Monday 14 January 2013

बदलते रिश्ते (भाग - 5)

सुनीता और अजय दोनों अब पूरी योजना बना चुके थे कि उन्हें बड़े भैया रविशंकर को और मझली भाभी को अपने शिकंजे में कैसे फांसना है। सुनीता का मकसद था बड़े भैया के साथ मजे लेना और अजय का इरादा था अपनी मझली भाभी की योनि लेना। अत: एक दिन मौका पाकर सुनीता बड़े भैया के कमरे में जा पहुंची और बोली, "बड़े भैया, मेरे सीने में एक गाँठ उभर आई है। इसमें सुबह से हल्का सा दर्द हो रहा है।" ऐसा कहते हुए सुनीता ने रवि का हाथ पकड़ अपनी दाहिनी चूची पर रख दिया। रवि के तन-बदन में एक झुरझुरी सी आ गयी। सुनीता बोली-"भैया अन्दर से पकड़ कर देखो, ऊपर से गाँठ दिखाई नहीं देगी।" रवि को सकुचाते देख सुनीता ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी कुर्ती के अन्दर डाल दिया। अन्दर ब्रा न पहने होने के कारण सुनीता की समूची नंगी चूची रवि के हाथ में आ गई। रवि ने हिम्मत करके उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया। सुनीता पर मदहोशी सी छाने लगी। बोली, "भैया, आप ऐसे ही धीरे-धीरे सहलाते रहो, इससे दर्द कुछ कम सा होता जा रहा है।" रवि भी अत्तेजित हो उठा था। उसने धीरे-धीरे अपना हाथ दोनों चूचियों पर फिराना शुरू कर दिया। सुनीता के सारे शरीर में करंट सा दौड़ गया। उसके मुंह से सिसकारियाँ फूटने लगीं। रवि ने हाथ पेट से होते हुए नीचे नाभि तक सरकाना शुरू कर दिया। उसका लिंग तन कर खड़ा होने लगा था जो सुनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था।
          रवि ने कहा, "सुन्नो, अपनी कुर्ती उतार दे। में अभी दरबाजा बंद करके आता हूँ।" और जब रवि लौटा तो उसने सुनीता को अपनी बांहों में भर कर चूम  और बोला, "सुन्नो, तू सीधी होकर लेट जा, मैं इस गाँठ को अभी ठीक करता हूँ।" तब रवि ने अर्ध-नग्न सुनीता की दोनों चूचियों को खुलकर सहलाना शुरू कर दिया और घुंडियों को मुंह में लेकर चूंसना भी आरम्भ कर दिया था। सुनीता मस्ती में भर कर सिस्कारियां भरने लगी थी। रवि ने अपना एक हाथ सुनीता की सलवार के अन्दर सरका कर उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया था। सुनीता सिंहर उठी और उसने रवि के सीने में अपना मुंह छुपा लिया। वह बोली, "भैया, यह क्या कर रहे हो?" "तुझे जी भर के प्यार कर रहा हूँ पगली, आज में तुझे इतना प्यार करूंगा जितना तुझे कभी किसी ने नहीं किया होगा। बोल चाहती है कि मैं तुझे इसी तरह प्यार करूँ ...या तुझे अच्छा नहीं लग रहा यह सब करना?"   "नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। मगर मुझे गुदगुदी सी हो रही है।"  "कहाँ हो रही है गुदगुदी सी, जरा मैं भी तो देखूं ..."   "दोनों जाँघों के  बीच में भैया ... आह: ... उंगली अन्दर न डालो भैया ..."   "क्यों, क्या दर्द हो रहा है? अच्छा, एक काम कर ...."  "क्या भैया?" "अपनी सलवार भी उतार दे। आज तुझे पूरा मज़ा दे ही डालूँ ..."  "नहीं भैया, मुझे डर लगता है। आप  वैसे ही करोगे, जैसा मझली भाभी के संग करते हो। .." 
          "क्या करता हूँ मैं मझली भाभी की संग?"  "आप उन्हें नंगा करके उनकी पेशाव की जगह में अपना मोटा वो डालते हो।"  " तुझे किसने बताया? ...."   "मैंने खुद अपनी आँखों से यह सब देखा है भैया ..... आपने पहले भाभी को नंगा किया फिर आप खुद भी नंगे हो गए, फिर आपने भाभी की पेशाव वाली जगह को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया ...तभी आपने अपना मोटा सा डंडा  भाभी की पेशाव वाली जगह में घुसेड़ दिया। अगर आप मेरी पेशाव वाली जगह में ऐसा करॊगे तो मेरी फट जायेगी भैया ..."   "चल तेरी नहीं फाडूंगा, पर उसे चाटने तो देगी।"  "हाँ भैया, चाट लेना।"  "तो जल्दी से उतार दे अपनी सलवार और बिलकुल नंगी हो जा, मेरी अच्छी सुन्नो।" "नहीं भैया, मुझे शर्म आती है।"  "क्यों शर्माती है ...मैंने तुझे नहलाते वक्त कभी नंगा नहीं देखा क्या, तू छोटी सी थी तबसे तुझे नंगा देखा है मैंने ....चल उतार दे सलवार ...आज एक-एक परत उठाकर देखूँगा तेरी।"  "नहीं भैया, आप फाड़ डालोगे मेरी ..."  "नहीं रे सुन्नो ...तेरी कसम, जरा भी तखलीफ़ नहीं होने दूंगा तुझे ..."  "भैया, आप ही नंगा करदो मुझे .... मुझे शर्म आती है।"  "अच्छा, नहीं मानती तो चल मैं ही तुझे नंगा किये देता हूँ, चल चूतड़ उठा।" रवि ने अपने हाथों से उसकी सलवार उतार फेंकी और उसकी दोनों जाँघों को फैला कर उसकी चिकनी दूधिया योनि पर हाथ फेरता हुआ बुदबुदाया, "मेरी सुन्नो, मुझे क्या पता था तेरी इतनी चिकनी और सुन्दर है रे .... चल पूरी ताक़त के साथ अपनी जाँघों को चौड़ा करके फैला दे। आज मैं जी भर के चखूंगा तेरी योनि का रस।"
          और फिर उसने पूरे जोशो-खरोश के साथ सुनीता की योनि चाटना शुरू कर दी। सुनीता अपने दोनों कुल्हे हिला-हिला कर किलकारियां भरने लगी।  "आह: बड़ा मज़ा आ रहा है भैया, और जोर से चाटो इसे ...उईईईईई ...मार डाला भैया आपने तो .."  "सुन्नो, मेरी रानी बहिना ...अभी तो मैंने  डाला ही नहीं है तेरे अन्दर, तू पहले से ही इतना शोर क्यों मचा रही है।"  "...तो अब डाल दो भैया, मेरे अन्दर कर दो ...अब तो बिलकुल ही सहन नहीं हो रहा।" रवि ने उचित मौका जान कर अपना मोटा लिंग उसके हाथ में थमा दिया और बोला, "देख सुन्नो, इतना मोटा झेल जाएगी? ...बोल डालूँ अन्दर?" सुनीता ने आँखें बंद कर रखीं थीं, लिंग को हाथ में लेकर उसे सहलाते हुए उसने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी। रवि ने अपने लिंग का अग्र भाग उसकी योनि के मुख पर टिका कर एक जोर का झटका मारा कि समूचा मोटा लिंग फनफनाता हुआ उसकी योनि के अन्दर समां गया और फिर उसने जोरों की धकापेल शुरू कर दी। मारे आनंद के चिंहुक उठी सुनीता। उसके मुंह से निकल पड़ा, "वाह  भैया, आज तो मज़ा आ गया। फाड़ डालो मेरी ...इतनी फाड़ो कि इसके चिथड़े उड़ जाएँ ..... उनसे रवि के चूतडों पर अपनी टांगें जकड़ रखीं थीं और चूतड़ उछाल-उछाल कर उसका साथ दे रही थी। रवि भी अपना मोटा इंजन गुफा के अन्दर तेजी से दौडाए जा रहा था। लगभग आधे घंटे तक लिंग-योनि की लड़ाई में दोनों को काफी मज़ा आ गया। इसके बाद रवि के लिंग से वीर्य की एक तेज धार फुट निकली जिससे सुनीता की योनि भर गयी। फिर दोनों एक-दूसरे से लिपट कर निढाल होकर पड़ गए।
          सुबह आठ बजे तक दोनों उसी प्रकार एक-दूजे की बांहों में लिपटे पड़े रहे। किसी बात की परवाह तो थी नहीं दोनों को। मझले भाई को दो दिन के बाद आना था। वह अपनी पत्नी के साथ ससुराल गया था। छोटा भाई अजय भी परीक्षा देने के लिए बाहर गया हुआ था। आठ बजे दोनों की आँखे खुलीं। सुनीता चौंक कर उठी और उसने झट अपने कपड़े पहने। रवि अभी भी सो रहा था। वह एक -टक उसे यों ही निहारती रही। ऊपर से नीचे तक रवि भैया का नंगा बदन देख कर उसकी योनि में एक वार को फिर से खुजली होने लगी। उसने हौले से उसके लिंग पर हाथ फिराया और हाथ में लेकर सहलाने लगी। इसी बीच रवि की आँखें खुल गयीं। उसने मुस्कुराते हुए सुनीता से कहा, "क्यों सुन्नो, फिर से डलवाने की इच्छा हो रही है क्या?" "आपकी मर्ज़ी है बड़े भैया, आपकी भी इच्छा है तो मुझे कोई इनकार नहीं है।" सुनीता की इसबात पर रवि ने उसे खींच कर अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसके ओठों से अपने हॉट सटा दिए। दोनों के हाथ एक बार फिर से एक दूसरे के अंगों से खेलने लगे। रवि ने सुनीता की चूचियों को रगड़ना शुरू कर दिया। सुनीता भी उसके मोटे लिंग से खुलकर खेल रही थी। "एक बात बताओ बड़े भैया, क्या भाभी को आपका यह मोटा-ताज़ा हथियार पसंद नहीं था।" सुनीता ने रवि के लिंग पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा। रवि बोला, "उसका यार जो बैठा है उसके मायके में। उसे छोड़ कर साली आना ही नहीं चाहती तो कोई क्या करे।"  "भैया, चलो अब तो दो-दो हैं, आपकी प्यास बुझाने वाली आपके पास।" "दो कौन हैं?"  "क्यों? एक मैं और एक मझली भाभी।"   "भैया, एक बात बताऊँ आपको, अजय भैया ने भी आपका और भाभी का खेल देख लिया है। जब मैं छुपकर आपको भाभी के साथ वो सब करते हुए देख रही थी तो अजय भैया भी आ गए और उन्होंने भी आपको भाभी की लेते हुए देख लिया था।"  "तो अब क्या करना चाहिए? तू ही बता।"  "आप मझली भाभी को समझा देना कि वह अजय भैया से भी करवा लें, नहीं तो वह आप दोनों की पोल खोल देंगे।"  "तू ही कुछ कर, उसे समझा-बुझा कर चुप करा दे।" "भैया, मैं क्या कर सकती हूँ। उस दिन जब मैं आपको मझली भाभी की लेते हुए देख रही थी तो वह भी आकर देखने लगे। वह इतने उत्तेजित हो गए कि उन्होंने मुझ पर ही हाथ फेरना शुरू कर दिया। एक वार तो मैं उनसे बचकर चली आई पर आखिर मैं कब तक बचती। उन्होंने मुझे हथियार डालने पर मजबूर कर दिया। और एक दिन मैं एक सेक्सी-मैगजीन पढ़ रही थी की उन्होंने देख लिया। मैंने उनसे पूछ लिया कि भैया, ये मास्टरवेशन क्या होता है तो उन्होंने मेरी सलवार खोल कर मुझे नंगा कर दिया और मेरी योनि में उंगली घुसेड़ कर बोले, 'इसे कहते हैं मास्टरवेशन' इतने पर ही उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा और मेरे साथ वो सब कर डाला जो आज रात को आपने मेरे साथ किया।"  "बड़ा हरामी निकला बहिनचोद, अपनी छोटी बहिन को ही चोद डाला साले ने !"  "भैया, आपने भी तो अपनी सगी छोटी बहिन को ही चोदा है। आप उनपर क्यों नाराज हो रहे हैं?" सुनीता की बात पर रवि बुरी तरह से झेंप गया। वह बोला, "चल जो हो गया सो हो गया, अब आगे की सोच ...अब क्या किया जाये।"  "भैया, मेरी बात मानो तो मझली भाभी को अजय भैया से चुदवा ही डालो। आप क्यों चिंता करते हो, मैं हूँ तो आपके पास, आपकी हर इच्छा पूरी करने के लिए। आप मेरी जिस तरह से चाहें लीजिये, मुझे कोई एतराज नहीं है। पर भैया, मझली भाभी को अजय भैया से चुदने लिए राज़ी कर लीजिये।" "ठीक है, मैं कल उससे बात करूंगा। अब आ, एक वार  तेरी और  ले लूं। उतार अपने कपड़े और आ बैठ मेरे मोटे से लिंग पर।" सुनीता ने झटपट अपने सारे कपड़े उतार फेंके और कतई नंगी होकर अपने बड़े भैया के वक्ष से आ लिपटी। 
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