हाय ! हम झंडाराम और ठंडाराम दोनों सगे भाई हैं। हम दोनों एक साथ मिलकर
हर काम किया करते हैं फिर वह काम भले ही चोरी-डकैती का हो या अपनी-अपनी
महबूबाओं के साथ रंगरेलियां मनाने का हो। बचपन से ही हमारी शक्लें भी
बिलकुल एक जैसी हैं। कई बार तो हमारी पत्नियाँ तक हम दोनों में अंतर नहीं
कर पातीं अत: हम दोनों अपनी पत्नियों के साथ मिलकर सेक्स का गेम खेला करते
हैं।
जब हमने अपनी सुहागरातें मनाई तो भी दोनों ने एक साथ मिलकर मनाई। जब
मेरी (अर्थात झंडाराम की) शादी हुई और मैं अपनी पत्नी के सुहागरात वाले
पलंग पर पंहुचा तो ठंडाराम पहले से ही वहाँ मौजूद था। मुझे कुछ पल को एक
हल्का सा धक्का भी लगा कि देखो पत्नी मेरी और मजे ले रहा है ठंडाराम।
परन्तु फिर मैंने यह सोच कर सब्र कर लिया कि एक दिन जब उसकी शादी होगी तो
मैं कौन सा पीछे रह जाऊँगा उसकी पत्नी के साथ मजे लूटने से। मेरी पत्नी
सिकुड़ी, डरी-डरी सी घूँघट में मुह छिपाए बैठी थी और ठन्डे उसके पास बैठा
उसका घूंघट उठा रहा था। उसने मन-ही मन गुनगुनाना शुरू कर दिया, " सुहागरात
है, घूंघट उठा रहा हूँ मैं......."
मुझे लगा कि आज की रात तो इसने ही मेरी बीवी को अपने जाल में फाँस
लिया। चलो दो घंटों के बाद ही सही आखिर मजे तो में भी मार ही लूँगा। यह सोच
कर मैं चुपचाप अपनी पत्नी की सुहागरात का जायजा लेने लगा। अब आगे क्या हुआ
यह मैं बाद में बताऊंगा। इस समय तो ठन्डे को अपनी पत्नी पर हाथ साफ़ कर ही
लेने दिया जाए। यही सब सोच-विचार कर मैं अलमारी की आड़ मैं छुप कर खड़ा हो
गया। यहाँ तक ठन्डे तक को भी इसका आभास नहीं हो पाया। और वह निर्विघ्न धीरे
आगे बढ़ता रहा। वह बेचारी पीछे, पीछे और पीछे हटती रही और फिर आगे बढ़कर
ठन्डे ने उसे दबोच ही लिया......
ठन्डे ने उसका घूंघट हटाकर उसका चेहरा देखा तो देखता ही रह गया।
अचानक उसके मुँह से निकल ही गया," भाभी, मेरी जान ! तुम तो बहुत ही जोरदार
चीज निकलीं। हमारे तो भाग ही खुल गए।" भाभी का संबोधन सुनकर दुल्हन का माथा
ठनका, पूछा उसने, "भाभी ? कौन भाभी? तुम मेरे पति होकर मुझे भाभी क्यों कह
रहे हो?"
ठन्डे को अपनी गलती का एहसास तुरन्त हो गया। उसने बात घुमाई,"अरे
मैं तो यूं ही मज़ाक कर रहा था। देखना चाहता था कि तुम पर इन शब्दों का
क्या असर होगा। चलो छोड़ो, बात आगे बढ़ाते हैं।" और फिर ठन्डे ने कस कर मेरी
पत्नी को अपनी बांहों में भर लिया और उसके ओठों पर अपने ओंठ सटा दिए।
पत्नी का यह पहला मौका था। अत: वह बुरी तरह से लजा गई।
ठन्डे ने पूछा,"क्यों क्या अच्छा नहीं लग रहा? लो, हमने छोड़ दिया
तुमको। अगर तुम्हें यह मिलन की रात पसंद नहीं तो नहीं करेंगे हम कुछ भी
तुम्हारे साथ....."
पत्नी बोली," हमने ऐसा कब कहा कि हमें यह सब पसंद नहीं। हम तो बस अँधेरा चाहते थे..। आप तो यूं ही नाराज होने लगे !"
ठंडा बोला,"इसका मतलब है कि तुम्हें हमारा ऐसा करना अच्छा लगा?"
दुल्हन ने स्वीकृति से सिर हिला दिया। लेकिन ठंडा बोला,"अगर हमने
लाईट बुझा दी तो हमें तुम्हारी गदराई जवानी का लुत्फ़ कैसे देखने को मिलेगा?
मेरी जान आज की रात भी भला कोई पत्नी अपने पति से शरमाती है? यह तो होती
ही सुहाग की रात है, इसमें तो पत्नी सारी-सारी रात पति के सामने निर्वस्त्र
होकर पड़ी रहती है, अब यह पति की इच्छा है कि वह उसका जैसे चाहे इस्तेमाल
करे।" दुल्हन चौंक उठी, बोली,"जैसे चाहे इस्तेमाल करे, इसका मतलब क्या है?
हम कोई चीज लग रहे हैं तुमको?"
ठंडा घबरा उठा, बोला,"चीज नहीं न, तुम तो हमारी सबकुछ लग रही हो रानी। मेरी जान, बस अब तो हम से लिपटा-चिपटी कर लो।"
ऐसा कहने के साथ ही ठंडा उसे दबोच उसके ऊपर छाने लगा।
"पहले लैट बंद कर दो, हाँ, वरना हम कतई ना सो पाएंगे तुम्हारे साथ...."
"देखो रानी, तुम्हें हमारी कसम, आज हमें अपने चिकने गोरे-गोरे बदन
का जायजा लेने दो न, आज हम लोग रौशनी में ही सब काम करेंगे और देखेंगे भी
तुम्हारे नंगे, गोरे बदन को। अगर तुम्हें पसंद नहीं है तो हम जाते हैं..समझ
लेंगे हमारी शादी ही नहीं हुई है।" ऐसा कह कर ठंडा पलंग से उठ खड़ा हुआ।
तभी दुल्हन ने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया, बोली, अच्छा चलो, पहले एक
वादा करो कि तुम हमें ज्यादा परेशान तो नहीं करोगे...जब हम कहेंगे हमें छोड़
दो तो छोड़ दोगे न?"
"हाँ, चलो मान ली बात।" ऐसा कहकर ठन्डे ने कहा,"अब तुम सबसे पहले
अपना ब्लाउज उतारो और उसके बाद अपनी ब्रा भी। आज हम तुम्हारे सीने का नाप
लेंगे।"
दुल्हन खिलखिलाई, बोली,"दर्जी हो क्या, जो हमारे सीने का नाप लोगे?"
"ठीक है, मत उतारो, हम तो चले, देखो कभी झांकेंगे भी नहीं तुम्हारे पास। अच्छी तरह से सोच लेना।"
दुल्हन शरमाते हुए बोली,"हम नहीं उतारेंगे अपनी चोली और ब्लाउज, ये काम तुम नहीं कर सकते? हम अपनी आँखें बंद कर लेते हैं।"
ठंडा पलंग से उठा ही था कि फिर बैठ गया, बोला," चलो, हम ही तुमको नंगा किये देते हैं।"
ऐसा कहकर उसने दुल्हन के ब्लाउज के हुक खोलने का प्रयास किया।
दुल्हन बोली," ना जी ना ! हम नंगे नहीं होंगे तुम्हारे सामने।"
"फिर किसके सामने नंगी होगी? अपने बाप के सामने ? जाओ नहीं देखना तुम्हारा नंगा बदन। सोती रहो अकेली ही रात भर...मैं तो चला !"
दुल्हन ने उसको इस बार फिर से रोक लिया, बोली,"चलो हम हार गए। लो पड़ जाते हैं तुम्हारे सामने, अब जो जी में आये करते रहो..."
दुल्हन सचमुच ठन्डे के आगे अपने दोनों पैरों को फैलाकर चित्त लेट
गई। ठन्डे ने दुल्हन का ब्लाउज उतार फैंका और फिर उसकी ब्रा भी। अब उसकी
गोरी-गोरी छातियाँ बिलकुल नंगी हो गई थी। ठन्डे ने उन्हें धीरे-धीरे मसलना
शुरू कर दिया। कभी उनकी घुन्डियाँ मुँह में डाल कर चूसता तो कभी उन्हें
अपनी हथेलियों में भर कर दबाता। बेचारी दुल्हन अपनी दोनों आँखों पर
हथेलियाँ टिकाये खामोश पड़ी थी। मुँह से दबी-दबी सी सिसकियाँ निकल रहीं थीं।
अब ठन्डे के हाथ और भी आगे बढ़ चले। नाभि से नीचे हाथ फिसलाकर उसने
दुल्हन के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया। दुल्हन उसी भांति निचेष्ट पड़ी रही।
उसने अपनी दोनों हथेलियाँ अपनी आँखों पर और जोरों से कस लीं। ठन्डे ने उसकी
साड़ी और पेटीकोट दोनों ही उसके शरीर से अलग कर दिए। अब दुल्हन उसके आगे
नितांत निर्वसन पड़ी थी। ठन्डे ने उसके नग्न शरीर को चूमना शुरू कर दिया।
ऊपर से लेकर नीचे तक ! अर्थात चुम्बन का सिलसिला ओठों से शुरू हुआ और
धीरे-धीरे ठोढ़ी, गर्दन, वक्ष, पेट आदि सभी स्थलों से गुजरता हुआ नाभि से
नीचे की ओर उतरने लगा।
दुल्हन अब तक काफी गरमा चुकी थी। उसके मुँह से विचित्र सी आवाजें
निकल रहीं थीं। अब ठन्डे ने भी अपने कपड़े उतार फैंके और बिल्कुल निर्वसन हो
कर दुल्हन से आ चिपटा, उसे अपने बांहों में भरते हुए ठन्डे ने पूछा,"अब
बताओ, मेरी रानी, मेरी जान ! कैसा लग रहा है अपना यह मिलन?.. अच्छा लग रहा
है न?"
दुल्हन ने हल्का सा सिर को झटका देकर स्वीकृति दी। ठन्डे ने तब
दुल्हन की दोनों टाँगें फैला कर असली मुकाम को देखने का प्रयास किया।
दुल्हन भी इतनी गरमा चुकी थी कि उसने तनिक भी विरोध न किया और अपनी दोनों
टांगों को इस तरह फैला दिया कि ठन्डे को ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही न
पड़ी।
"वाह ! कितना प्यारा है तुम्हारा यह संगमरमरी बदन, जैसे ईश्वर ने
बड़ी फुर्सत में बैठ कर गढ़ा हो इसे। मेरी रानी, बस एक ही बात अखर रही है
इसमें...."
क्या ? ...." दुल्हन ने झट से पूछा।
ठंडा बोला,"तुम्हारी जाँघों के बीच के ये काले ,घने, लम्बे-लम्बे
बाल। इसमें तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। तुमने शादी से पहले कभी इन्हें
साफ़ नहीं किया?"
"चल हट !" दुल्हन ने शरमाते हुए कहा,"हमें ऐसी बातें कौन बताता भला...?"
"क्यों क्या तुम्हारी भाभियाँ नहीं हैं क्या...? ये सारी बातें तो भाभियाँ ही ननदों को शादी से पहले समझाती हैं..."
"ठीक है, इन बालों को अभी साफ़ करके आओ ! तब आगे सोचेंगें कि क्या करना है।"
दुल्हन बोली,"हमसे यह सब नहीं होगा...। हमने आज तक जो काम किया ही
नहीं, एकदम से कैसे कर लेंगें?"तब तो हमें ही इन्हें साफ़ करना पड़ेगा। ऐसा
कहकर ठन्डे उठा और एक रेजर ले आया और बोला," चलो, फैलाओ अपनी दोनों टांगें !
बिल्कुल एक दूसरे से हटाकर। बिलकुल चौपट कर दो।"
"हाय राम, कैसी बातें करते हो...? नहीं, हमें तो बहुत शर्म आ रही है।" दुल्हन एक दम लजा गई।
ठन्डे ने उठकर दुल्हन की दोनों जांघें चौड़ी कर दीं और रेजर से योनि
पर उगे बालों को साफ़ करने लगा। दुल्हन ने अधिक विरोध नहीं किया और शांत पड़ी
अपने बाल साफ़ करवाती रही। ठन्डे ने उसकी चिकनी योनि पर हाथ फेरा और आहें
भरता हुआ बोला,"आह ! कितनी प्यारी है तेरी, कतई गुलाबी, बिल्कुल बालूशाही
जैसी। दिल करता है खा जाऊँ इसे...."
ऐसा कहते के साथ ही ठन्डे ने अपना मुँह दुल्हन की जाँघों के बीचोबीच
सटा दिया और चाटने लगा। दुल्हन के मुँह से सिसकारियां फूट पड़ीं।
सीई...आह,,, छोड़ो..क्या करते हो...कोई देख लेगा तो क्या कहेगा....."
"क्या कहेगा....अपनी बीवी के जिस्म को चूम-चाट रहे हैं। कौन नहीं
करता यह सब? हम क्या अनोखा काम कर रहे हैं.." कहते हुए ठन्डे ने एक ऊँगली
दुल्हन के अन्दर कर दी।
दुल्हन मारे दर्द के कराह उठी,"हाय राम, मर गई मैं तो.....ऊँगली निकालो बाहर, मेरी तो जान ही निकली जा रही है...."
ठन्डे को दुल्हन का इस तरह तड़पना बड़ा अच्छा लगा। वह और जोरों से
ऊँगली अन्दर-बाहर करने लगा। दुल्हन पर तो जैसे नशा सा छाने लगा था। उसकी
आँखें मुंद गई और वह अपनी कमर व नितम्बों को जोरों से उछालने लगी।
ठन्डे ने पूछा," सच बताओ, मज़ा आ रहा है या नहीं?"
दुल्हन ने अपनी दोनों बाँहें ठन्डे के गले में डाल दीं और अपना मुँह
उसके सीने में छुपा लिया," छोड़ो कोई देख लेगा तो...." दुल्हन बांहों में
कसमसाई।
ठन्डे बोला,"फिर वही बात, अगर कोई देखे तो अपनी माँ को मेरे पास भेज
दे....देखे तो देखे भूतनी वाला....... हम तो तुम्हारा नंगा बदन देख-देख कर
ही सारी रात काट देंगें।" ठन्डे ने दुल्हन का एक हाथ पकड़ा और अपनी जाँघों
के बीच ले गया।
दुल्हन को लगा कि कोई मोटा सा बेलन उसके हाथों में आ गया हो, किन्तु
बेलन और इतना गर्म-गर्म? उसने घबरा कर अपना हाथ वापस खींच लिया और ठन्डे
से नाराज होती हुई बोली,"छोड़ो, हमें ऐसी मजाक हमें बिल्कुल अच्छी नहीं
लगती..."
"अच्छा जी, उंगली डालने वाला मजाक पसंद नहीं और जब आठ इंच का यह
मोटा हथियार अन्दर घुसेगा तो कैसे बर्दाश्त करोगी? अभी देखना तुम्हारा क्या
हाल होगा। देखना जरा इसकी लम्बाई और मोटाई..." ऐसा कहकर ठन्डे ने अपना
मोटा लिंग दुल्हन के हाथ में थमा दिया।
दुल्हन प्रत्युत्तर में मुस्कुराई भर, बोली कुछ भी नहीं।
झंडाराम अभी तक अलमारी की आड़ में छुपा सब कुछ बड़े ध्यान से देख रहा था
और सोच रहा था कि कब ठन्डे अपना काम ख़त्म करे और फिर उसकी बारी आये। उसे
ठन्डे पर अब क्रोध आने लगा था कि वह क्यों फ़ालतू की बातों में इतना वक्त
बर्बाद कर रहा था। जल्दी से पेल-पाल कर हटे वहाँ से। उसकी पैन्ट खिसककर
घुटनों से नीचे आ गिरी था और उसने अपना बेलनाकार शरीर का कोई हिस्सा बाहर
निकल रखा था जिसे वह हाथ फेर कर शांत करने का प्रयास कर रहा था।
इधर ठन्डे का भी बुरा हाल था। उसने दुल्हन की आँखों से उसके हाथ
हटाये और बोला," देखो जी, अब हमें कतई बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है। अभी तक
तुम अपनी आँखें बंद किये पड़ी हो। अब तो तुम्हें हमारा भी देखना पड़ेगा।
आँखें खोलो और इधर देखो हमारे इस हथियार को, जो अभी कुछ ही देर में
तुम्हारी इस सुरंग में अन्दर घुसने वाला है। फिर यह न कहना कि मुझे तुमने
बताया ही नहीं।"दुल्हन ने कनखियों से ठन्डे के नग्न शरीर की ओर देखा तो
देखती ही रह गई। करीबन आठ-दस इंच का मोटा बेलन सा ठन्डे का हथियार देख कर
दुल्हन मन-मन काँप उठी, किन्तु बोली कुछ भी नहीं और एक टक उसी को निहारती
रही।
ठन्डे ने चुस्की ली,"क्यों, पसंद आया न हमारा यह मोटा, लम्ब-तगड़ा सा
हथियार? अब से इस पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। तुम्हें ही इसकी हर इच्छा
पूरी करनी होगी। ये जो-जो मांगे देती जाना।" दुल्हन चिहुंक उठी," यह भी कुछ
मांगता है क्या?"
"हाँ, यह सचमुच मांगता है....अच्छा इसे पकड़ कर धीरे-धीरे सहलाकर
इससे पूछो तो बता देगा कि इसे क्या चाहिए...." ऐसा कहकर ठन्डे ने अपना
हथियार दुल्हन के हाथों में थमा दिया।
दुल्हन ने डरते-डरते उसे थामा और उसे सहलाने का प्रयास किया कि वह
फनफना उठा, जैसे कोई सांप फुंकार उठा हो। पर दुल्हन ने जरा भी हिम्मत न
हारी और उसे आहिस्ता-आहिस्ता सहलाने लगी। दुल्हन को भी अब मज़ा आने लगा था
वह सारा डर भूल कर उसे सहलाने में लगी थी।
ठन्डे ने दुल्हन से अपनी दोनों जांघें फैलाकर चित्त लेट जाने को कहा
और फिर उसकी जाँघों के बीच में आ बैठा। ठन्डे ने अपने हथियार को धीरे से
उसकी दोनों जाँघों के बीच में टिका दिया और उसे अंदर घुसेड़ने का प्रयत्न
करने लगा।
दुल्हन की साँसें तेज चलने लगीं। उसका अंग-अंग एक विचित्र सी सिहरन
से फड़कने लगा और वह उत्तेजना की पराकाष्ठा को छूने लगी। अब वह इतनी
उत्तेजित हो उठी थी कि ठन्डे के क्रिया-कलापों का भी विरोध नहीं कर पा रही
थी। अब उसे बस इन्तजार था तो केवल इस बात का कि देखें ठन्डे का हथियार जिसे
उसने अपनी दोनों जाँघों के बीच दबा रखा था, उसकी सुरंग में जा कर
क्या-क्या गुल खिलाने वाला है। यह तो वह भी जान चुकी थी कि ठन्डे अब मानने
वाला तो था नहीं, उसका तन-तनाया हुआ वह मोटा, लम्बा हथियार अब उसके अन्दर
जाकर ही दम लेगा। अत: दुल्हन ने आतुरता से अपनी दोनों जाँघों को, वह जितना
फैला और चौड़ा कर सकती थी उसने कर दिया ताकि ठन्डे का हथियार आराम से उसकी
सुरंग में समा सके। हालांकि यह दुल्हन का पहला-पहला मौका था। इससे पूर्व
उसे किसी ने छुआ तक नहीं था।
वह जब फिल्मों में सुहागरात के दृश्य देखती थी तो उसका दिल कुछ अजीब
सा हो जाता था। परन्तु आज उसे इतना बुरा भी नहीं लग रहा था। उसकी आँखें
हल्की सी मुंदती जा रहीं थीं। इसी बीच ठन्डे ने अपना तनतनाया हुआ डंडा
दुल्हन की दोनों जाँघों के बीच की खाली जगह में घुसेड़ दिया। एक ही झटके
में पूरा का पूरा हथियार सुरंग के अन्दर जा घुसा जिससे सुरंग में भारी हलचल
मच गई।दुल्हन को लगा कि किसी ने उसके अन्दर लोहे का गर्म-गर्म बेलन पूरी
ताक़त से ठोक दिया हो, वह दर्द से तड़प उठी और ठन्डे के डंडे को हाथों से
बाहर निकालने की कोशिश करने लगी। मगर ठन्डे था कि जोरों से धक्के पे धक्का
मारे जा रहा था।
दुल्हन की सुरंग से खून का फव्वारा फूट पड़ा। ठन्डे ने लोहे के बेलन
जैसे हथियार से दुल्हन की सुरंग को फाड़ कर रख दिया था। वह बराबर सिसकियाँ
भरती हुई दर्द से छटपटा रही थी। लेकिन ठन्डे था कि रुकने का नाम नहीं ले
रहा था। करीब आधा घंटे की इस पेलम-पेल में ठन्डे कुछ ठंडा पड़ा और अंत में
उसने ढेर सारा गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ दुल्हन की फटी सुरंग में उड़ेल दिया
और उसके ऊपर ही निढाल सा हो कर लुढ़क गया।
दुल्हन अभी भी बेजान सी पड़ी थी पर अब उसका दर्द कम हो चुका था। एक
नजर उसने ठन्डे के डंडे पर डाली जो सिकुड़ कर अपने पहले के आकार से घट कर
आधा रह गया था। थोड़ी देर बाद ठन्डे उठा और बाथरूम की ओर चला गया। ज्यों ही
ठन्डे बाथरूम में गया कि झंडे को मौका मिलगया और उसने लपक कर ठन्डे की जगह
ले ली। दुल्हन को शक हो पाता इससे पूर्व ही झंडे ने अपनी पोजीशन ले ली और
दुल्हन के नग्न बदन से चिपट कर सोने का बहाना करने लगा। दुल्हन फिर से गरमा
गई। उसे इस मिलन में दर्द तो हुआ लेकिन उसे बाद में बड़ा अच्छा लगा।
झंडे बोला,"रानी, आज हम जी भर के तुम्हारी नंगी देह से खेलेंगे।
तुम्हारी इसकी (उसने योनि पर हाथ सटाते हुए) आज एक-एक परत खोल कर देखेंगे।"
ऐसा कहकर उसने योनि को सहलाना शुरू कर दिया। अब दुल्हन शर्माने के
बजाए उसे अपनी योनि को दिखाने में झंडे का सहयोग कर रही थी। बीच-बीच में वह
झंडे के लिंग को भी सहलाती जा रही थी। दोनों ने एक-दूजे के गुप्तांगों से
जी भर के खेला।
इसी बीच झंडे बोला,"रानी, एक काम क्यों न करें। आओ, हम एक-दूसरे के अंगों का चुम्बन लें। तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?"
दुल्हन कुछ न बोली। झंडे ने आगे बढ़ कर अपना लिंग दुल्हन के होटों
से लगा दिया और बोला," मेरी जान, इसे अपनी जीभ से गीला करो। देखो फिर कितना
मज़ा आएगा। फिर मैं भी तुम्हारी योनि को चाट-चाट कर तुम्हें पूरा मज़ा
दूंगा। राम कसम ! ऐसा मज़ा आएगा जिसे जिंदगी भर न भूल पाओगी।"
दुल्हन ने अपना मुँह धीरे से खोल कर झंडे के लिंग पर अपनी जीभ फिराई
। सचमुच उसे कुछ अच्छा सा लगा। फिर तो उसने झंडे का सारा का सारा लिंग
अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। उत्तेजना-वश उसके समूचे शरीर में
कंपकंपी दौड़ गई। वह अब काफी गरमा गई थी। उसे नहीं पाता था कि पत्नी पति का
लिंग मुँह में लेकर चूसती होगी। आज पहली बार उसे इस नई बात का पता चला।
झंडे भी काफी उत्तेजित था। लगभग आधे घंटे की चूमा-चाटी के बाद झंडे का
वीर्य निकलने को हो गया। उसने कहा,"मेरी जान, मेरा वीर्य अब निकलने वाला
है। कहो तो तुम्हारे मुँह में ही झड़ जाऊं?" दुल्हन ने पूछा,"इससे कोई
नुक्सान तो नहीं होगा...?"
"नहीं, बिलकुल नहीं। यह तो औरत को ताक़त देता है..."
दुल्हन बोली, "तो चलो झड़ जाओ..."
झंडे ने कस-कस कर दस-पंद्रह जोरदार धक्के लगाये और उसके मुँह में
ढेर सारा वीर्य उड़ेल दिया। दुल्हन ने सारा का सारा वीर्य गटक लिया। झंडे का
लिंग भी पहले की अपेक्षा कुछ सिकुड़ गया था। दुल्हन ने हाथ से पकड़ कर देखा
और बोली,"अरे ये तो सिकुड़ कर कितना छोटा हो गया। ऐसा क्यों ?"
झंडे बोला, आदमी जब झड़ जाता है तो उसका लिंग ऐसे ही सिकुड़ कर छोटा
पड़ जाता है। हाँ, अगर औरत चाहे तो उसे फिर से अपने मुँह में डाल कर चूसे
तो लिंग फिर बड़े आकार में आ जाता है।" "सच? फिर करें इसको बड़ा.....?"
"हाँ, हाँ, क्यों नहीं.. यह भी आजमाकर देखो मेरी जान, मेरे दिल की रानी...."
दुल्हन ने पुन: झंडे के लिंग को अपने मुँह में लिया और धीरे-धीरे
अपनी जीभ से चाटने लगी। सचमुच झंडे ने ठीक कहा था। लिंग फिर से तनतना गया
और किसी सांप की तरह फुंकार उठा।
झंडे बोला,"इस बार इस नाग देवता को अपनी गुफा में जाने दो...देखो कैसे-कैसे रंग दिखाएगा यह..। चलो जल्दी अपनी जांघें फैलाओ....."
दुल्हन ने किसी आज्ञाकारी पत्नी की भांति अपनी दोनों जांघें छितराकर
फैला दीं। झंडे ने अपना आठ इंच लम्बा लिंग दुल्हन के योनी-द्वार पर टिका
दिया.....और जब उसने कस कर एक जोरों का धक्का मारा तो दुल्हन की चीख ही
निकल पड़ी। इस बार उसे दर्द तो हुआ लेकिन जो दर्द हुआ वह इस बार के सम्भोग
के आनंद के आगे कुछ भी नहीं था। उसने ख़ुशी से किलकारी भरते हुए झंडे के
गले में अपनी दोनों बाँहें डाल दी और अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर सम्भोग का
पूरा-पूरा मज़ा लेने लगी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं...." खूब जोरों से...और
तेज ...आह..मेरी मैया..मर गई मैं तो....आज मेरी फट कर रहेगी.....मेरे
राजा..। आज इसे फाड़ ही डालो..। जी भर के फाड़...दो..। मुझे .। और जोरों से
फाड़ो...देखो रुकना नहीं ....अपना इंजन पटरी से उतरने मत देना...." दुल्हन
किसी बेशर्म वेश्या की तरह गन्दी-गन्दी बातें बके जा रही थी।
झंडे ने और भी जोरदार धक्के मारने शुरू कर दिए, बोला,"ले धक्के गिन मेरी जान, पूरे-पूरे सौ धक्के मारूंगा। ....."
झंडे खुद ही धक्कों को गिनता भी जा रहा था। और वास्तव में उसने कर
ही दिखाया। पूरे सौ धक्के मार कर भी वह अधिक नहीं थका था। एक सौ दस धक्कों
के बाद उसने दुल्हन का गर्भस्थल अपने गर्म-गर्म वीर्य से भर दिया। कुछ देर
तक दोनों ही लोग खामोश पड़े रहे। अगले ही पल झंडे के हाथ पुन: दुल्हन के
शरीर से खेल रहे थे। दुल्हन बिलकुल बेजान गुड़िया बनी चुपचाप अपने नग्न बदन
पर झंडे के हाथों का आनंद ले रही थी। वह तो चाहती ही थी कि झंडे सारी रात
उसके निर्वसन शरीर से खेलता रहे। वह भी अब उसके लिंग को सहला-सहला कर मज़े
ले रही थी।
झंडे ने कहा,"रानी, एक काम और रह गया। ..आओ उसे भी पूरा कर डालें..."
"कौन सा काम ?" दुल्हन ने पूछा।
तो झंडे ने बताया कि अब उन्हें गुदा-मैथुन का मज़ा लेना चाहिए।
यह क्या होता है? दुल्हन के पूछने पर झंडे ने बताया कि इस खेल में
पति अपनी पत्नी की गुदा में लिंग डालता है और फिर उसे भी योनि की भांति ही
चोदता है। इस खेल में औरत को बड़ा ही आनंद आता है।
और तब गुदा-मैथुन का खेल खेला गया जिसमें दुल्हन को काफी तकलीफ़
झेलनी पड़ी। लगभग आधे घंटे के इस खेल के दौरान दुल्हन की गुदा भी फट सी गई
थी। किन्तु दुल्हन एक बार फिर से अपनी योनि में झंडे का लिंग डलवाने की
तमन्ना कर रही थी। अत: वह बार-बार झंडे के लिंग को पकड़ कर सहलाने लगती और
तब उसका लिंग फिर से तनतना जाता।
झंडे बोला,"अब यार सोने दो हमें, खुद भी सो जाओ, सुबह जल्दी उठना भी तो है।"
झंडे ने घडी पर एक नज़र डाली। पूरे दो बज रहे थे। दुल्हन को नीद नहीं
आ रही थी। वह बोली, " खुद का मन भर गया तो नीद आने लगी जनाब को। हमारा
क्या, हमारी तो जैसे कोई इच्छा ही नहीं...."
झंडे बोला,"क्यों, क्या अभी भी कोई कसर बाक़ी है जिसे पूरी करना
है...। सारा काम तो कर डाला। देखो, मुँह में तुम्हारे घुसेड़ दिया, पिछले
छेद में तुम्हारे घुसेड़ दिया। योनि तुम्हारी फाड़ डाली, अब कौन सी जगह है
खाली, मैं जहाँ करूंगा..."
दुल्हन झंडे का हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर ले गई और बोली,"तुम यहाँ करोगे, हाँ, हाँ ! तुम यहाँ करोगे...."
"क्या मुसीबत है यार..। अच्छी शादी की । मैं तो एक रात में ही
परेशान हो गया...." झंडे बड़बड़ाते हुए उठ बैठा। दिखाओ, किसमें करना है..?
दुल्हन ने अपनी दोनों जाघें फैला दीं और उन्हें चीर कर दिखाती हुई
बोली, देखो, तुमने मुझमें इतनी आग लगा दी है कि जो बुझाये नहीं बुझ रही है।
बस एक बार डाल दो अपना यह मोटा सा मूसल मेरे अन्दर..."
झंडे ने चुस्की ली," किसी और को बुलाऊं जो अच्छी तरह से तुम्हारी चूत को चित्तोड़गढ़ का किला बना डाले?"
और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।"
"हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है...." दुल्हन यह सुन कर हक्का-भक्का रह गई।
उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ
गया। उसने पूछा,"क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?"
सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।
"कौन हो तुम...? तुम अन्दर कैसे आये ? " दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।
और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।"
"हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है...." दुल्हन यह सुन कर हक्की-बक्की रह गई।
उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ
गया। उसने पूछा,"क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?"
सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।
"कौन हो तुम...? तुम अन्दर कैसे आये ? " दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।
ठन्डे बोला,"भाभी जी, मैं हूँ ठन्डे राम, आपका छोटा देवर, जिसने अभी
कुछ देर पहले ही आपका कौमार्य भंग किया है। मैं ही हूँ वह पापी जिसने अपनी
सीता जैसी भाभी का छल से सतीत्व भंग कर डाला। अब आप जो भी सजा देंगी मुझे
मंजूर होगी। लेकिन इससे पहले आप को मेरी एक बात सुननी होगी..। हुकुम करें
तो सुनाऊं ?"
तब ठन्डे ने बड़े ही ठन्डे मन से कहना शुरू किया,"भाभी, हम दोनों
भाई दो जिस्म एक जान हैं। आज तक हमें कोई भी अलग नहीं कर पाया। हम अगर कोई
चीज खाते भी हैं तो मिल-बाँट कर। हमने आज तक कोई भी काम अकेले नहीं किया।
फिर यह सुहागरात वाली रात हमें अलग कैसे कर सकती थी। इसी लिए हम दोनों ने
एक योजना बनाई, जिसके तहत मैं तो आपकी ले चुका, खूब जी भर के मज़े जब ले
लिये तो मैंने आपको आपके असली हक़दार को सौंप दिया। अगर इसे आप बुरा समझतीं
हैं तो मैं सजा पाने को तैयार हूँ। मगर एक बात अच्छी तरह से समझ लेना कि जो
भी सजा आप मुझे देंगी उसमें मेरा भाई यानि आपके पतिदेव भी बराबर के
हिस्सेदार होंगे।"
ठन्डे के मुँह से सारी बातें सुनकर दुल्हन सिसकने लगी और अपने भाग्य
को कोसने लगी। उसने रोते-बिलखते अपने सामने खड़े दोनों व्यक्तियों से
पूछा,"अब तुम दोनों ही फैसला करो कि मैं किसकी दुल्हन हूँ? तुम्हारी या फिर
तुम्हारी?"
झंडे बोला अगर फैसला मुझ पर छोड़ती हो तो मैं यही कहूँगा कि तुम भले
ही मेरी ब्याहता बीवी हो लेकिन यह हम दोनों के बीच की बात रहेगी कि तुम हम
दोनों भाइयों की ही बन कर रहोगी। जितना अधिकार तुम पर मेरा है इतना ही
अधिकार तुम पर मेरे छोटे भाई ठन्डे का भी रहेगा..."
दुल्हन सुबकते हुए बोली,"और जो बच्चे होंगें, वो किसके कहलायेंगे?"
"वो हम दोनों के बच्चे होंगे। हम दोनों भाई उनको एक सा प्यार देंगें, जमीन जायदाद में बराबर का हिस्सा होगा।"
"और जो तुम्हारे छोटे भाई ठन्डे की बीवी होगी? उसका क्या रहेगा, क्या तुम दोनों भाई उसे भी आधा-आधा बाँट लोगे..?"
झंडे ने एक पल को सोचा और फिर बोला,"हाँ, तो इसमें हर्ज़ ही क्या
है?...वह भी सुहागरात वाली रात को इसी तरह से मिल-बाँट कर खाई
जायेगी..क्यों भाई ठन्डे, सच कह रहा हूँ न?"
"भैया, आप बिलकुल सही कह रहे हैं। हम दोनों भाइयों के बीच अब तक तो ऐसा ही होता आया है।" ठन्डे ने जबाब दिया।
दुल्हन बोली,"अगर तुम में से कोई एक मर गया तो मैं अपने माथे का सिन्दूर पौंछूंगी या नहीं....?"
दुल्हन के इस प्रश्न पर दोनों भाइयों ने एक पल को सोचा फिर दोनों एक
साथ बोले,"तुम्हें सिन्दूर पोंछने की नौबत नहीं आएगी। हम ऐसे ही नहीं मरने
वाले। और अगर मरे भी तो एक साथ मरेंगे। एक साथ जियेंगे।"
दुल्हन को अभी भी सब्र नहीं हो पा रहा था, वह बोली,"इस समस्या का
फैसला चाचा-चाची से करवाउंगी..." दुल्हन की बात पर दोनों भाई जोरों से
हंसने लगे और काफी देर देर तक हँसते रहे, फिर बोले,"ठीक है, हमें तुम्हारी
बात मंजूर है। अब रात भर यूँ ही जागती रहोगी या सोओगी भी?"
झंडे ने दुल्हन की ओर देखते हुए कहा। अगर तुम्हें भैया की बात समझ
में आती हो तो हम दोनों भाई अभी भी तुम्हारी सेवा में हाजिर हैं। क्यों न
तीनों एक दूसरे की बांहों में सिमटकर सो जाएँ..। बोलो मेरी भाभी जान, क्या
कहती हो?"
दुल्हन ने एक निगाह दोनों के नंगे शरीर पर डाली। उसे उन दोनों में
जरा सा भी तो अंतर नजर नहीं आ रहा था। बिलकुल एक शक्ल-सूरत, एक सा बदन,
यहाँ तक लिंग भी दोनों का एक ही आकार का नज़र आ रहा था। दुल्हन बिना कुछ
बोले ही उन दोनों के बीच में आकर लेट गई। अर्थात दुल्हन ने दोनों को ही
अपना पति मान लिया था।
झंडे बोला " भई ठन्डे! ..."
"हाँ भाई, झंडे, बोलो क्या करना है अब। ये तो तुम्हारी बात मान कर हमारे बीच में आ सोई है।"
"झंडे बोला,"इसका मतबल है कि कुड़ी मान गई है। अरे ठन्डे, कहीं तू वाकई ठंडा तो नहीं पड़ गया?"
"नहीं भैया, मेरा तो अभी भी तना खड़ा है। करना क्या है, बस आप हुकुम करो।"
"अरे बेशर्म, अपनी भाभी की तड़पन कुछ कम कर दे। बेचारी सुलग रही है बुरी तरह से..."
"अभी लो भैया," ठन्डे उठा और दुल्हन पर आ चढ़ा।
दुल्हन भी गर्मा गई और फिर तीनों ने सेक्स का खेल रात भर खेला। कभी
ठन्डे का लिंग दुल्हन की योनि को फाड़ता तो कभी झंडे का लिंग, जैसे कि
दोनों में एक होड़ सी लग गई। दुल्हन अपनी दोनों जांघें फैलाए रात भर उनके
लोहे जैसे लिंगों का मज़ा लेती रही। तीनों लोग बिल्कुल निर्वसन हुए रात भर
एक-दूजे से चिपटे पड़े रहे।
सुबह चाची जी ने आकर उन्हें उठाया। दुल्हन जब हड़बड़ाकर उठी तो वह
बिल्कुल नंगी दोनों भाइयों के बीच लेटी पड़ी थी। उसने लपक कर पास पड़ी चादर
खींच ली और अपने आप को ढकने का प्रयास करने लगी।
चाची मुस्कुराई, बोली,"अभी नई-नई है न, इसी लिए शरमा रही है। बहू,
हमसे कोई शर्म करने की जरूरत नहीं है । मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, मेरे
दोनों बेटे आज तक हर चीज को मिल-बाँट कर खाते रहे हैं। जब मैं इस घर में आई
थी, ये दस-दस साल के थे। मेरे ये दोनों जिठोत जुड़वां पैदा हुए थे। कुछ समय
बाद ही इनकी माँ मर गई। मेरे जेठ ने इन्हें बड़े ही लाड़-प्यार से पाला
था। मेरी शादी से कुछ माह पहले ही मेरे जेठ भी चल बसे। मरते समय उन्होंने
इन दोनों भाइयों का हाथ तुम्हारे चाचा जी के हाथ में देकर यह वचन माँगा था
कि कितनी ही मुसीबत आ जाए पर इन पर आंच न आने देना। तुम्हारे चाचा जी आज भी
अपने भाई को दिए गए वचन की लाज निभा रहे हैं। मेरे जेठ जी ने इन दोनों
भाइयों से भी एक वचन माँगा था कि ये दोनों भाई हर चीज को मिल-बाँट कर खाएं।
पिता को दिए गए इसी वचन की खातिर ये दोनों भाई आज तक हर चीज को मिल-बाँट
कर ही खाते रहे हैं और आज रात को भी दोनों भाइयों ने तुम्हें मिल-बाँट कर
ही खाया।"
चाची ने सोते हुए अपने दोनों बेटों की बलैयाँ अपने सिर-मत्थे लेते
हुए उन्हें झकझोर कर उठाया। दोनों भाई उठ खड़े हुए और अपने-अपने कपड़े पहनने
लगे।
दुल्हन ने आश्चर्य से पूछा,"चाची जी, ये लोग आपसे शरमाते नहीं। इतने
बड़े होकर भी आपके सामने यूँ ही नंगे पड़े रहते हैं। जबकि आप की उम्र भी
कोई ज्यादा नहीं है। आप ज्यादा से ज्यादा इनसे दस वर्ष बड़ी होंगी..."
"नहीं, मैं इनसे सिर्फ छः साल बड़ी हूँ। क्योंकि जब मैं इस घर में
ब्याह कर आई थी तब मेरी उम्र सोलह वर्ष की थी। और मेरे ये दोनों बेटे सिर्फ
दस वर्ष के थे। मेरे घर में कदम रखते ही तुम्हारे चाचा ने मुझे अपनी कसम
देकर कहा,"देखो जी, एक बात गाँठ में बाँध लो। मेरे ये दोनों भतीजे आज से
तुम पर मेरी अमानत के रूप में रहेंगे। ये लोग कितनी भी शरारत करें, कितना
भी तुम्हें परेशान करें, पर इनकी शिकायत मुझसे कभी ना करना। तुम जिस तरह से
इन्हें सजा देना चाहो देना। मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगा। तब से आज तक मैंने
कभी भी तुम्हारे चाचा जी से इनकी शिकायत नहीं की। इनकी हर अच्छी बुरी बात
को मैं उनसे छिपाती पर अपने ढंग से इन्हें सजा देती...."
चाची जी कहते-कहते कुछ रुक गईं।
"चाची जी, आगे कहिये न? आप रुक क्यों गईं?" दुल्हन ने पूछा।
चाची बोलीं,"तुम्हारे चाचा की चौथी पत्नी हूँ मैं। जब मेरी उनसे
शादी हुई तो तुम्हारे चाचा पचास साल के थे और मैं सिर्फ सोलह साल की। मेरे
माँ-बाप बहुत गरीब थे। अत: अच्छा खाता-पीता घर देख कर मेरे माँ-बाप ने एक
पचास वर्ष के बूढ़े से मेरी शादी कर दी। तुम्हारे चाचा जी सुहागरात वाली रात
को ही शराब पीकर घर लौटे तो दो अन्य आदमी भी उनके साथ थे जो मुझसे बोले,
"भाभी जी नमस्ते! कैसी हैं आप.."
"ठीक हूँ.." इस संक्षिप्त से उत्तर से शायद वो लोग खुश नहीं हुए।
खैर, उस समय तो वो दोनों इन्हें घर छोड़ कर चले गए पर आते-जाते मुझ
पर बुरी निगाहें डालते रहे। जब भी मौका मिलता कहते, "आह! तेरी चढ़ती जवानी
और बूढ़े का साथ...छीई..छी..छी..। भगवान् भी कितना निर्दयी है। कैसा जुल्म
किया है बेचारी पर। हाय री किस्मत...बूढा क्या कर पाता होगा बेचारी के
साथ...अरे हमारे पास आजा रानी खुश कर देंगे तुझे मेरी जान !"
कहते कहते चाची जी सुबकने लगीं। फिर कुछ साहस बटोर कर बोलीं,"बहु,
तुझसे आज मैं कुछ भी नहीं छिपाउंगी, इधर तुम्हारे चाचा जी की हालत और भी
ज्यादा बदतर होती जा रही थी। सुहागरात वाली रात को आये और आते ही पलंग पर
लुढ़क गए। रात के तीन बजे के करीब इनकी आँख खुली तो मेरे पास आकर लेट गए।
थोड़ी देर तक मेरे वक्ष से खेलते रहे। अपने हाथ से मेरे निचले हिस्से को
टटोलते रहे, मेरी जांघें सहलाते रहे, मेरी उसमें भी उंगली करते रहे और अंत
में मुझे खूब गर्म करके एक ओर को लुढ़क गए। यह सिलसिला अब रोज-रोज चलने
लगा। आते और मुझे नंगा करके घंटों कभी मेरी छातियों से खेलते, कभी मेरे
योनि में उंगली डाल कर मुझे काफी गर्म कर देते और फिर मुझे तड़पता छोड़ कर
सो जाते। क्योंकि मेरी योनि को सहलाते ही वे अपने कपड़ों में ही झड़ जाते
थे। अब मेरे पास कृत्रिम रूप से अपनी जवानी की आग को शांत करने के अलावा और
कोई दूसरा साधन न था। मैं छुप-छुपकर कृत्रिम साधनों से अपनी कामाग्नि को
शांत करने की कोशिश करती। योनि में कभी लम्बे वाले बैंगन डाल कर अपनी
कामाग्नि को शांत करती तो कभी आधी-आधी रात को उठकर नहाती तब कहीं जाकर मेरी
आग ठंडी पड़ती। कई बार मन में गंदे-गंदे ख्याल आते-जाते रहते। सोचती
थी कि जो लोग मुझ पर बुरी नज़र डालते हैं उन्हीं से अपनी जवानी मसलवा लूँ।
पर यह करना भी मेरे वश की बात न थी। तुम्हारे चाचा जी की इज्जत का ख्याल मन
में आते ही मेरा मन अपने आप को कोसने लगता।"
अब मेरे पास कृत्रिम रूप से अपनी जवानी की आग को शांत करने के अलावा और
कोई दूसरा साधन न था। मैं छुप-छुपकर कृत्रिम साधनों से अपनी कामाग्नि को
शांत करने की कोशिश करती। योनि में कभी लम्बे वाले बैंगन डाल कर अपनी
कामाग्नि को शांत करती तो कभी आधी-आधी रात को उठकर नहाती तब कहीं जाकर मेरी
आग ठंडी पड़ती। कई बार मन में गंदे-गंदे ख्याल आते-जाते रहते। सोचती थी कि
जो लोग मुझ पर बुरी नज़र डालते हैं उन्हीं से अपनी जवानी मसलवा लूँ। पर यह
करना भी मेरे वश की बात न थी। तुम्हारे चाचा जी की इज्जत का ख्याल मन में
आते ही मेरा मन अपने आप को कोसने लगता।"
जब कभी तुम्हारे चाचाजी बाहर गए होते तो मेरे ये दोनों बच्चे मेरे
ही पास मुझसे चिपटकर सोते थे। वह भी एक भयानक रात थी। चाचा तुम्हारे किसी
काम से बाहर गए थे। बाहर आंधी-तूफ़ान का माहौल था। दोनों बच्चे, झंडे और
ठन्डे मुझसे चिपटकर सो रहे थे। हालांकि झंडे और ठन्डे अब दोनों ही
सोलह-सोलह साल के हो चले थे, फिर भी मेरे लिए तो बच्चे ही थे। अचानक से
बादल बड़ी जोरों से गरजे और फिर मूसलाधार बारिश होने लगी। झंडे मेरे सीने
से चिपट कर सो रहा था। ठन्डे मेरी पीठ की ओर था।
इसी बीच मुझे लगा कि कोई चीज मेरी जाघों से सट रही है। मैंने हाथ से
टटोलकर देखा तो मेरा हाथ झंडे के लिंग से जा टकराया। झंडे का लिंग एकदम
किसी जवान आदमी का सा महसूस हुआ मुझे। क्योंकि तुम्हारे चाचा जी का लिंग भी
कभी माह, दो माह में खड़ा होता हुआ मैंने देखा था। मेरी नीयत में खोट आ
गया। मैंने उठकर लाइट जला दी और गौर से झंडे के लिंग में होती हुई हरकतों
को देखने लगी। अब मेरा मन झंडे के लिंग से खेलने को मचलने लगा। कहते है कि
घर पर खीर रखी हो तो कोई भूखे पेट क्यों सोये। मैंने झट से लाइट बुझा दी और
झंडे को अपने सीने से सटाकर लेट गई।
धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ ले जा कर झंडे के लिंग पर रख दिया और उस
पर हाथ का दबाव डालने लगी। झंडे का लिंग फूल कर मोटा हो गया। मैंने झट से
हाथ हटा लिया। झंडे सो रहा था लेकिन मेरे दिल की ख्वाइश अधूरी थी। मेरा
ध्यान उसी के लिंग में पड़ा था। इसी बीच मुझे एक तरकीब सूझी। मैंने अँधेरे
में ही झंडे का हाथ खींच कर अपने वक्ष पर रख लिया और अपनी साड़ी कुछ ऊपर को
चढ़ा ली। साड़ी इस तरह से ऊपर उठाई थी कि मेरी जांघें और योनि का कुछ भाग
भी चमकता रहे।
झंडे को मैंने धीरे से उठाया और कहा,"झंडे, उठ तो बेटा मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है। थोड़ी सी बाम मसल दे मेरे माथे पर.."
झंडे उठ बैठा और बोला,"बाम कहाँ रखी है चाची...?"
"लाइट जला कर देख ले बेटा।"
झंडे उठा और उसने लाइट ऑन कर दी। मैं अनजान सी बनी चुपचाप लेटी रही।
बहुत देर तक झंडे बाम खोजता रहा पर उसे बाम ढूँढ़ने में इतनी देर क्यों लग
रही थी ये बात मैं भली-भांति समझ सकती थी।
"लाइट बंद करदूं चाची?"
शायद झंडे को बाम मिल गई थी।
"हाँ, बंद कर दे, और बाम रगड़ दे मेरे माथे पर..."
झंडे के कोमल, जवान हाथ मेरे माथे को रगड़ते हुए मेरे मन में
गुदगुदी पैदा कर रहे थे। मन में नए-नए ख़याल आ-जा रहे थे। मैं अपना तन-मन सब
कुछ झंडे पर न्यौछावर करने को तैयार बैठी थी। बस इन्तजार था तो उसकी पहल
का। बड़ा ही ढीठ लड़का है, बुद्दू कहीं का..। एक जवान औरत क्या चाहती है,
मूर्ख इतना भी नहीं जानता।
कुछ देर बाद जब वह माथे पर बाम रगड़ चुका तो मैंने कहा,"झंडे, मेरे
बच्चे, जरा सी बाम मेरे सीने पर भी मल दे। सांस लेने में भी परेशानी हो रही
है..."
झंडे थोड़ा सा नीचे खिसक आया और उसने मेरे सीने पर भी बाम रगड़ना
शुरू कर दिया। उसके हाथ मेरे छातियों को छूते हुए मेरे पेट तक पहुँच रहे
थे। मुझे जाने कितना सुकून मिल रहा था कह नहीं सकती। झंडे ही तो था मेरी
चढ़ती, उफनती जवानी में कदम रखने वाला पहला मर्द जिसने मेरी जिन्दगी के
आईने में रंग भर दिए।
"बेटा, मेरे पैर और टांगें भी दबा दे। कमर से नीचे के हिस्से में बहुत ही दर्द हो रहा है, तुझे नीद तो नहीं आ रही?"
"नहीं।" कह कर झंडे ने मेरी टांगों को दबाना शुरू कर दिया। न जाने
किस मिट्टी का बना था मरदूद कि जरा भी हाथ नहीं बहका रहा। मुझे मन ही मन उस
पर क्रोध आ रहा था। गाड़ी को पटरी पर ला ही नहीं रहा।
"अब मेरी जांघें सहला दे, जरा हल्के-हल्के से। जोरों से मत रगड़ना .."
झंडे हल्के हाथों से मेरी दोनों जांघें सहलाने लगा। मेरी योनि के
बाल उसके हाथ से टकरा रहे थे। इस बार मैंने महसूस किया कि लौड़ा बहकने लग
गया था। बार-बार उसके हाथ मेरी जाँघों के बीच की घाटी की गहराई नापने लगते।
"हाँ, ऐसे ही बेटा, बड़ा ही आराम मिल रहा है...."
मेरा इशारा शायद उसने समझ लिया था। उसने अब मेरी योनि के बालों से खेलना शुरू कर दिया था।
"जोरों की खुजली हो रही है इन बालों में ! बेटा जरा कड़े हाथ से खुजा दे इनको...। "
"चाची !"
"क्या है?" मैंने पूछा।
तो वह बोला,"कहो तो इन बालों को मैं साफ़ कर दूं ?"
"इतनी रात गए? ठन्डे पास ही सो रहा है..जाग गया तो?"
"तो चलो बाथरूम में चलें...."
"चल बेटा, तू कहता है तो..."
झंडे और मैं दोनों बाथरूम में आ गए। बाथरूम काफी बड़ा था, जिसमें
मैं अपनी दोनों जांघें चौड़ी करके लेट गई और झंडे मेरी योनि के बाल बनाने
लगा।
मैंने पूछा,"झंडे, तुझे कहीं शर्म तो नहीं आ रही मुझे नंगा देख कर...?"
"क्यों, शर्म कैसी, तुम तो मेरी माँ समान हो..."
"अच्छा तू बता, तेरे बाल अभी आये हैं या नहीं...?"
"हैं चाची, पर अभी तुम्हारे बालों की तरह घने, काले नहीं हैं..."
"दिखा तो मुझे भी ! देखें, तेरे बाल कैसे हैं?"
झंडे ने शरमाते हुए अपने पजामे का नाड़ा खोल दिया। मैंने उसके पजामे
को नीचे खिसका दिया। वाह, क्या लिंग था झंडे का, मोटा, तना हुआ, ऐसे लहरा
रहा था मानो कोई मोटा सांप सपेरे की टोकरी से भाग कर यहाँ आ छुपा हो। मुझे
तो थी ही लिंग की भूख, मैंने आव देखा न ताव, झट से झंडे के उफनते लिंग को
अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। मेरे बाल झंडे साफ़ कर
चुका था।
मैंने उसके कानो में फुसफुसाकर कहा,"अब चल, चलकर सोते हैं।"
फिर झंडे और मैं दोनों लोग वापस आकर अपने बिस्तर पर सो गए। लाइट
बुझा दी थी। मैंने झंडे के कान में कहा, "झंडे, बेटा तू अपने चाचा से तो
नहीं कहेगा कि मैंने तुझसे अपने बाल साफ़ करवाए थे..। देख बेटा, तेरे चाचा
मार डालेंगे मुझे...।"
"नहीं चाची, तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मेरा भी तो मन कर रहा था तुम्हारी योनि देखने का !"
मैंने पूछा,"अब तो देख ली ना?"
"हाँ," झंडे बोला।
"कैसी लगी तुझे?" मैंने पूछा।
तो उसने बताया कि आज उसे बड़ा ही अच्छा लगा।
"अच्छा, एक बात बता, तूने कभी किसी लड़की की योनि देखी है?"
"अभी तक तो नहीं देखी..." वह बोला, आज पहली बार मैंने तुम्हारी ही देखी है चाची।"
"मेरी योनि के बाल साफ़ करने का विचार तेरे मन में क्यों आया भला...?"
"ऐसे ही..। जब तुमने मुझसे बाम मसलवाई थी तो मैंने तुम्हारी योनि देख ली थी। बस यूँ ही दिल चाहने लगा...."
"अगर तेरा मन करने लगा कि आज चाची के साथ वो सब कर डालूं जो एक पति अपनी पत्नी के साथ करता है तो तू कर डालेगा..?"
झंडे घबरा गया, बोला,"नहीं चाची, ऐसा क्यों करने लगा मैं..."
"ठीक है, चल अब एक खेल खेलते हैं, तू मेरी योनि में अपनी उंगली डाल
कर मेरी योनि को सहलाएगा और मैं तेरा लिंग सहलाती हूँ, कैसा रहेगा यह
खेल...?"
झंडे बोला," ठीक रहेगा, इधर नींद भी कहाँ आ रही है।"
और फिर झंडे ने मेरी योनि में अपनी उंगली करना शुरू कर दिया। मैं भी
उसके लिंग को अपनी मुट्ठी में भर धीरे-धीरे सहला रही थी। कुछ देर के बाद
मैंने उससे कहा,"झंडे, कुछ मज़ा नहीं आ रहा। ऐसा करते हैं कि तू मेरी योनि
को चाटे और मैं तेरे लिंग को अपने मुँह में भरकर चूंसुंगी। सच बड़ा ही मज़ा
आएगा ऐसा करने में।"
झंडे ने पूछा,"क्या तुम और चाचा ऐसा ही करते हो?"
मैं उसकी बात पर चिहुक उठी,"तेरे चाचा में अगर इतना ही दम होता तो मैं क्यों तड़पती तेरे लिंग के लिए..."
झंडे ने बड़े ही भोलेपन से पूछा,"चाची, आप सचमुच तड़पती हो ऐसा करने के लिए?"
"और नहीं तो क्या, जरा सोच, मैं ब्याह के बाद भी आज तक कुँवारी हूँ।
तेरे चाचा में इतनी ताक़त नहीं कि अपना लिंग मेरे अन्दर डाल सकें.."
"सच चाची? तब तो मैं आपकी मदद जरूर करूंगा, पर एक बात बताओ चाची, तुम्हारे संग ऐसा काम करना पाप तो नहीं होगा?"
मैंने कहा,"अरे पगले, पाप तो जब है कि हम किसी को कोई कष्ट
पहुंचाएं। मुझे तो तुझसे करवाने में मज़ा मिलेगा। देख, अगर तू मुझे खुश
रखेगा तो बात घर की घर में ही रहेगी और जरा सोच यही काम मैं बाहर करवाती
फिरूँ तो तेरे चाचा की कितनी बदनामी होगी।"
"ठीक है चाची, मैं तैयार हूँ...." तब मैंने झंडे को अपने सीने से
लगाकर जोरों से भींच लिया। फिर मैंने उसके उत्थनित लिंग को पकड़ कर अपने
योनि-द्वार पर टिका दिया और उसके कानों में धीमे से फुसफुसाई,"झंडे, अपना
लिंग मेरी योनि के अन्दर घुसाने की कोशिश कर...!"
मैं भी अपने चूतड़ों को आगे-पीछे धकेल कर झंडे का लिंग अपनी योनि के
अंदर गपकने की चेष्टा कर रही थी। मेरी अनछुई योनि उत्तेजना वश अब पानी
छोड़ने लगी थी। मैंने झंडे के चूतड़ों को कस कर अपनी ओर खींचा और अपनी ओर से
भी एक जोरदार धक्का मारा।
इस बार की मेहनत सफल हो गई। झंडे का फनफनाता हुआ मोटा लिंग मेरी
योनि द्वार को चीरता हुआ घचाक से पूरा का पूरा अन्दर घुस गया। मेरे मुँह से
एक जोरों की चीख फूट पड़ी जिस पर मैंने तुरंत ही काबू पा लिया। झंडे ने भी
लिंग के अन्दर घुसते ही तेजी पकड़ ली। वह बड़े जोरदार धक्के मार-मार कर मेरी
चूत फाड़े डाल रहा था। हालांकि मेरी अछूती योनि का उदघाटन आज पहली बार
झंडे ने किया था। इसलिए योनि की झिल्ली के फट जाने की वजह से मेरी योनि से
काफी खून भी निकला था परन्तु वह सारा दर्द मैं सहन कर गई थी, क्योकि आज
झंडे के संसर्ग से मुझे आसमान की उंचाईयों को छूने का अवसर जो मिल गया था।
ख़ुशी के मारे मेरी हिलकियां फूट पड़ीं और मैं लाज, हया, शर्म छोड़ कर जोरों
से चीखने-चिल्लाने लगी," बेटा तेज करो इन धक्कों को...आह..आज निचोड़ डाल
मुझे नीबू की तरह। फाड़ दे मेरी चूत...मेरी बुर में वर्षों से आग लगी है
मेरे लाल, मिटा दे इसकी भूख..। झंडे बेटा, मैं पिछले छः सालों से किसी मर्द
के लंड की भूखी हूँ। आज तेरा लंड पाकर तेरी चाची धन्य हो गई....."
इस प्रकार हम दोनों ने छक कर यौन-सुख का लाभ उठाया। उस रात तो झंडे
ने मेरी जम कर चुदाई कर डाली और मैं उसका मोटा लंड पाकर निहाल हो गई।
उस समय तो झंडे ने मुझसे कुछ भी नहीं कहा। पर बाद में उसने
कहा,"चाची तुम्हें याद है कि मैं और ठन्डे हर चीज को मिल-बाँट कर ही खाते
हैं।"
"हाँ, जानती हूँ। तो क्या वह भी मेरी चूत का मज़ा लेगा..?"
झंडे ने खुशामद भरे अंदाज में कहा,"चाची प्लीज, मना मत करना, तुम्हें मेरी कसम..."
"अच्छा जा, वह भी चलेगा। चल जगा दे उसे भी...."
मैं अब दोनों भतीजों को पाकर अपने भाग्य पर इठलाने लगी थी...और अब
भी इन दोनों पर मुझे पूरा नाज है, बहू। अब तू जो चाहे मुझे कह ले..रंडी कह
या सासू माँ, या चाची कह कर पुकार...मैंने तो जो सचाई थी तेरे सामने रख दी।
एक रिश्ते से तो मैं तेरी सास ही हुई और दूसरे रिश्ते से तेरी सौत भी हुई।
तू जो रिश्ता मेरे साथ निभाना चाहे तू निभा सकती है...."
चाची के मुँह से सारी सचाई जानकर दुल्हन के मन को बड़ी तसल्ली हुई।
उसने आगे बढ़कर अपनी सासू माँ के पैर छू लिए और उनके गले से लग कर रोने
लगी।
एक रोज दुल्हन यूँ ही पूछ बैठी,"चाची जी, आपकी चुदाई का खेल क्या
चाचा जी को मालूम है? उन्हें पता है कि उनके प्यारे भतीजे उन्हीं की पत्नी
को चोदते हैं...."
चाची ने स्वीकृति से सिर हिलाते हुए कहा,"हाँ बहू, तेरे चाचा जी सब
जानते हैं। उन्होंने मुझे कई बार झंडे, ठन्डे के साथ ये सब काम करने के लिए
खुद ही सलाह दी थी। उनका कहना है कि इससे घर की बात घर में ही दबी रहेगी।
कभी-कभी तो वह भी हमारा ये सेक्स गेम काफी-काफी देर तक बैठ कर देखते रहे
हैं।
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