Wednesday 12 December 2012

बदलते रिश्ते (भाग - 2)


     ज रामलाल अपनी बहू अनीता के साथ कामक्रीड़ा में व्यस्त था। अपने बेटे अनमोल को वह अक्सर विवाह-शादियों में भेजता रहता था ताकि वह अधिक से अधिक रातें अपनी पुत्र-बधु अनीता के बिता सके। अनीता से यौन-सम्बंध बनाने के बाद से वह पहले की अपेक्षा कुछ और अधिक जवान दिखने लगा था। बहू की योनि में अपनी उंगली डाल कर उसे इधर-उधर घुमाते हुए उसने पूछा - "रानी, मैं देख रहा हूँ, कुछ दिनों से तुम किसी चिंता में डूबी हुयी नज़र आ रही हो।" अनीता ने कहा - राजा जी, मेरी छोटी बहिन के ससुराल वालों ने पूरे पांच लाख रूपए की मांग की है। मेरे तीनों भाई मिलकर सिर्फ चार लाख रूपए ही जुटा पाए हैं। उन लोगों का कहना है कि अगर पूरे पैसों का प्रवंध नहीं हुआ तो वे लोग मेरी बहिन सुनीता से सगाई तोड़ कर किसी दूसरी जगह अपने बेटे का ब्याह कर लेंगे।" रामलाल कुछ सोचता हुआ बोला, "उनकी माँ का खोपड़ा सालों की। तू चिन्ता मत कर, उनका मुंह बंद करना मुझे आता है। बस इतनी सी बात को लेकर परेशान है मेरी जान।" रामलाल ने एक साथ तीन उंगलियाँ बहु की योनि में घुसेड़ दीं। अनीता ने एक लम्बी से आह: भरी। ससुर की बात पर अनीता खुश हो गयी, उसने रामलाल का लिंग अपनी मुट्ठी में लेकर सहलाना शुरू कर दिया और उसके अंडकोषों की गोलियों को घुमा-घुमा कर उनसे खेलने लगी।
     रामलाल बोला - "अपनी बहिन को यहीं बुला ले मेरी रानी, मेरी जान! हम भी तो देखें तेरी बहिन कितनी खूबसूरत है।"  "मेरी बहिन मुझसे सिर्फ तीन साल ही छोटी है। देखने में बहुत गोरी-चिट्टी, तीखे नयन नक्श, पतली कमर, सुडौल कूल्हों, के साथ-साथ उसके सीने का उभार भी बड़े गज़ब का है।" रामलाल के मुंह में पानी भर आया, बहू की बहिन की इतनी सारी तारीफें सुनकर। वह आहें भरता हुआ बोला - "हाय, हाय, हाय! क्या मेरा दम ही निकाल कर छोड़ेगी मेरी जान, अब उसकी तारीफें करना बंद करके यह बता की कब उसे बुला कर मेरी आँखों को ठंडक देगी। मेरा तो कलेजा ही मुंह को आ रहा है उसकी तारीफें सुन-सुन कर ..." अनीता बोली - "देखो जानू, बुला तो मैं लूंगी ही उसे मगर उस पर अपनी नीयत मत खराब कर बैठना। वह पढ़ी-लिखी लड़की है, अभी-अभी बीए पास किया है उसने। आपके झांसे में नहीं फंसने वाली वो।"  रामलाल ने उसे पानी चढ़ाया बोला, "फिर तू किस मर्ज़ की दबा है मेरी बालूसाही!  तेरे होते हुए भी अगर हमें तेरी बहिन की कातिल जवानी चखने को न मिली तो कितने दुःख की बात होगी। हाँ, रूपए-पैसों की तू चिंता न करना। ये चाबी का गुच्छा तेरे हाथों में थमा दूंगा, जितना जी चाहे खर्च करना अपनी बहिन की शादी में। तू तो इस घर की मालकिन है, मालकिन!"   
      रामलाल 500 बीघे का जोता था। ट्रेक्टर-ट्राली, जीप, मोटर-साइकिल, नौकर-चाकर, एक बड़ी हवेली सब-कुछ तो था उसके पास, क्या नहीं था? तिजूरी नोटों से भरी रहती थी उसकी। अगर कहीं कमी थी तो उसके बेटे के पास पुरुषत्व की। अनीता तो तब भी रानी होती और अब भी महारानियों की तरह राज कर रही थी, रामलाल की धन-दौलत पर और साथ ही उसके दिल पर भी।
     अनीता ने रामलाल की बात पर कुछ देर तक सोचा और फिर बोली, "हाय मेरे राजा ...मैं कैसे राज़ी करूंगी उसे तुम्हारे साथ सोने को?"  रामलाल ने बहू की योनि में अब अपना समूचा लिंग घुसेड़ दिया और उसे धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करता हुआ बोला, "मेरी बिल्लो, वह सीडी किस दिन काम आएगी। उसे दिखा कर पटा लेना। जब वह घोड़े, कुत्ते, भालुओं को नंगी औरतों की योनि फाड़ते हुए देखेगी तो उसकी योनि भी पानी छोड़ने लगेगी। तू उसको पहले इतने सीन दिखा डालना फिर वह तो खुद ही अपनी योनि में उँगलियाँ घुसेड़ने लगेगी। अगर वह ना अपनी फड़वाने को राज़ी हो जाए तो मैं तेरा हमेशा के लिए गुलाम बन जाऊँगा।" अनीता बोली, "ये कौन सा बड़ा काम करोगे। गुलाम तो मेरे अब भी हो मेरे दिल के राजा! मैं तो तुम पर अपना सब-कुछ लुटाये बैठी हूँ, अपनी लाज-शर्म, अपनी इज्जत-आबरू और अपना ईमान-धर्म तक। अब धीरे-धीरे मेरी योनि की संग मजाक और खिलवाड़ मत करो। जरा, जोरों के धक्के मार दो कस-कस के।" रामलाल ने अपने लिंग में तेजी लानी शुरू कर दी, उसपर मानो मर्दानगी का भूत सबार हो गया था। इतने तेज धक्कों की चोट तो शायद ही कोई औरत बर्दाश्त कर पाती। पर अनीता तो आनन्दित होकर ख़ुशी की किलकारियां भर रही थी - आह मेरे शेर ...कितना मज़ा आ रहा है मुझे ...बस ऐसे ही सारी रात मेरी दहकती भट्टी में अपना भुट्टा भूनते रहो। तुम्हारी कसम मैं अपनी बहिन की जवानी का पूरा-पूरा मज़ा दिलवा कर रहूंगी ...आह: ओह ...सी ई ई ई ई ई...आज तो मेरी पूरी तरह से फाड़कर रख दो ... भले ही कल तुम्हें मेरी योनि किसी मोची से ही क्यों न सिलवानी पड़े।" रामलाल ने धक्कों की रफ़्तार पूरी गति पर छोड़ दी,  दे दना दन ...आज रामलाल ने तय कर लिया कि जब तक अनीता उससे रुकने को नहीं कहेगी, वह धक्के मारता ही रहेगा। करीबन तीस-चालीस मिनटों तक रामलाल ने थमने का नाम नहीं लिया। अंत में जब तक अनीता निचेष्ट होकर न पड़ गयी रामलाल उसकी बजाता ही रहा।
     दूसरे ही दिन अनीता ने खबर भेज कर अपनी छोटी बहिन सुनीता को अपने यहाँ बुलवा लिया। अनीता के मायके में तीन भाई और एक बहिन थी उससे सिर्फ तीन साल छोटी। माता-पिता उसके बचपन में ही मर चुके थे। सभी भाई-बहिनों को बड़े भाई ने ही पाला था। अनीता के दो भाई विवाहित थे और सबसे छोटा भाई अभी अविवाहित था। वह हाल में ही नौकरी पर लगा था। कुल मिलकर उसके मायके वालों की दशा कुछ ख़ास अच्छी न थी। उस पर सुनीता के ससुराल वालों का दहेज़ में पांच लाख रूपए की मांग करना, किन्तु रामलाल द्वारा उनकी मांग पूरी करने की बात सुनकर अनीता की सारी चिंता जाती रही। आज ही उसकी छोटी बहिन उसके घर आयी थी। ससुर रामलाल ने अनीता को अपने पास बुलाकर उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा - "रानी समझ गयी न तुझे क्या करना है, किसी प्रकार अपनी बहिन को वह सीडी दिखा दे। तेरी कसम, जबसे उसके रूप को मैंने देखा है, तन-बदन में आग सी लगी हुयी है। आज ही तो अनमोल बाहर गया है, सात दिनों के बाद लौटेगा। तब तक तुम दोनों बहिनों की जवानी का रस खूब छक कर पिऊंगा। खूब जम कर मज़ा लूँगा इन सात रातों में। जा, जाकर उसे वह सीडी दिखा ..."
     अनीता अपने कमरे में आई और उसे ब्लू-फिल्म दिखाने की कोई तरकीब सोचने लगी। दोपहर का खाना खाकर दोनों बहिनें पलंग पर लेट कर बातें करने लगीं। बातों ही बातों में अनीता ने उसके ब्याह का ज़िक्र छेड़ दिया। इसी दौरान अनीता ने सुनीता से पुछा, "सुनीता, तुझे सुहागरात के वारे में कुछ नालेज है कि उस रात पति-पत्नी के बीच क्या होता है? फिर न कहना कि मुझे इस वारे में किसी ने कुछ बताया ही नहीं था।" सुनीता ने अनजान बनते हुए शरमाकर पूछा, "क्या होता है दीदी, उस रात को? बताइये, मुझे कुछ नहीं मालूम।" अनीता बोली, "पगली, इस रात को पति-पत्नी का शारीरिक मिलन होता है।"   "कैसे दीदी, जरा खुल के बताओ न, कैसा मिलन?"  "अरी पगली, पति-पत्नी एक दूसरे को प्यार करते हैं। पति पत्नी के ओठों का चुम्मन लेता है, उसके ब्लाउज के हुक खोलता है और फिर उसकी ब्रा को उतार कर उसकी चूचियों का चुम्मन लेता है, उन्हें दबाता है। धीरे-धीरे पति अपना हाथ पत्नी के सारे शरीर पर फेरने लगता है, वह उसकी छातियों से धीरे-धीरे अपना हाथ उसकी जाँघों पर ले जाता है और फिर उसकी दोनों जाँघों के बीच की जगह को अपनी ऊँगली डाल कर उसका स्पर्श करता है।"  "फिर क्या होता है दीदी, बताइये न, आप कहते-कहते रुक क्यों गयीं?"  "कुछ नहीं, मैं भी तुझे क्यों ये  बातें बताने लगी। ये सारी बातें तो तुझे खुद भी आनी चाहिए, अब तू बच्ची तो नहीं रही।" अनीता ने नकली झुंझलाहट का प्रदर्शन किया। "दीदी, बताओ प्लीज, फिर पति क्या करता है पत्नी के साथ?"  "उसे पूरी तरह से नंगी कर देता है और फिर खुद भी नंगा हो जाता है। दोनों काफी देर तक एक दूसरे के अंगों को छूते हैं, उन्हें सहलाते हैं और अंत में पति अपनी पत्नी की योनि में अपना लिंग डालने की कोशिश करता है। जब उसका लिंग आधे के करीब योनि के अन्दर घुस जाता है तो पत्नी की योनि की झिल्ली फट जाती है और उसे बड़ा दर्द होता है, योनि से कुछ खून भी निकलता है। कोई-कोई पत्नी तो दर्द के मारे चीखने तक लगती है। परन्तु पति अपनी मस्ती में भर कर अपना शेष लिंग भी पत्नी की योनि में घुसेड ही देता है।"  "फिर क्या होता है दीदी?"  "होता क्या, थोड़ी-बहुत देर में पत्नी को भी पति का लिंग डालना अच्छा लगता है और वह भी अपने कुल्हे मटका-मटका कर पति का साथ देती है। इस क्रिया को सम्भोग-क्रिया या मैथुन-क्रिया कहते हैं।"
      अनीता समझ चुकी थी कि अब सुनीता भी पूरी जानकारी लेने को उताबली हो गयी है तो उसने सुनीता से कहा, "अगर तू पूरी जानकारी चाहती है तो मेरे पास सुहागरात की एक सीडी पड़ी है, उसे देख ले बस तुझे इस वारे में सब-कुछ पता लग जायेगा।"  सुनीता एक दम चहक उठी, बोली, "दिखाओ दीदी, कहाँ है वह सीडी? जल्दी दिखाओ नहीं तो रात को जीजू आ जायेंगे तुम्हारे कमरे में।" अनीता बोली, "तेरे जीजू के पास वो सब-कुछ है ही कहाँ, जो मेरे साथ कुछ कर सकें।" सुनीता ने आश्चर्य से पूछा, "हैं, सच दीदी...जीजू नहीं करते आपके साथ, जो कुछ आपने मुझे बताया अभी तक पति-पत्नी के रिश्ते के वारे में?" अनीता बोली, "तेरे जीजू तो बिलकुल नामर्द हैं। पहली रात को तो मैंने किसी तरह उनका लिंग सहला-सहला कर खड़ा कर लिया था और हम-दोनों का मिलन भी हुआ था मगर उस दिन के बाद तो उनके लिंग में कभी तनाव आया ही नहीं।" सुनीता ने पूछा, "दीदी, फिर तुम अपनी इच्छा कैसे पूरी करती हो?" अनीता बोली, "ये सारी बातें मैं तुझे बाद में बताउंगी, पहले तू सीडी देख।"
     अनीता ने सीडी लेकर सीडी प्लेयर में डाल दी और फिर दोनों बहिनें एक साथ मिलकर देखने लगीं। पहले ही सीन में एक युवक अपनी पत्नी की चूचियां दबा रहा था। पत्नी सी ..सी करके उत्तेजित होती जा रही थी और युवक का लिंग अपनी मुट्ठी में लेकर सहला रही थी। धीरे-धीरे उसने पत्नी के सभी कपड़े उतार फेंके और खुद भी नंगा हो गया। उसने अपनी पत्नी की योनि को चाटना शुरू कर दिया। पत्नी भी उसका लिंग मुंह में लेकर चूंस रही थी। यह दृश्य देखकर सुनीता के सम्पूर्ण शरीर में एक उत्तेजक लहर दौड़ गयी। उसकी योनि में भी एक अजीब सी सुरसुराहट होने लगी थी। वह बोली, "दीदी, मुझे कुछ-कुछ हो सा रहा है।" अनीता बोली, "तेरी योनि भी पानी छोड़ने लगी होगी।" सुनीता बोली, "हाँ दीदी, चड्डी के अन्दर कुछ गीला-गीला सा महसूस हो रहा है मुझे।" अनीता ने उसकी सलवार खोलते हुए कहा,"देखूं तो ..." अनीता ने ऐसा कहकर सुनीता की योनि को एक उंगली से सहलाना शुरू कर दिया। एक सिसकी सुनीता के मुंह से फूट निकली .."आह: दीदी, बहुत मन कर रहा है, कोई मोटी सी चीज ठूंस दो इसके अन्दर,  बस आप इसी तरह से मेरी योनि में अपनी उंगली डाल कर उसे अन्दर-बाहर करती रहो।" अनीता ने सुनीता की सलवार उतार फेंकी और बोली, "तू इसी तरह से चुपचाप पड़ी रहना मैं दरबाजे की सिटकनी लगा कर अभी आती हूँ।"
     अनीता ने लौट कर देखा कि सुनीता अपनी योनि को खूब तेजी से सहला रही थी। अनीता ने उसके सारे कपड़े उतार कर उसे पूरा नंगा कर दिया और फिर वह खुद भी नंगी हो गयी। दोनों बहिनों ने एक-दूसरे को अपनी बांहों में भर लिया और कस कर चिपट गयीं। दोनों बहिनों की आँखें टीवी पर टिकी थीं जहाँ स्त्री-पुरुषों के बीच नाना-प्रकार की काम-क्रीड़ायें चल रही थीं। अनीता ने सुनीता की चूचियों को कस कर दबाना शुरू कर दिया और अपने होट उसके होटों से सटा दिए। सामने के दृश्य में एक सांड अपने लिंग को एक नंगी औरत की योनि में घुसेड़ने की तैयारी में था। कुछ ही देर में वह अपना लिंग उसके योनि में घुसेड़ कर लगातार धक्के लगा रहा था और अंत में औरत सांड के लिंग को बर्दाश्त न कर पाई और बेहोश होगई। सांड उसकी फटी हुयी योनि से बहता हुआ खून चाट-चाट कर उसे साफ़ कर रहा था। यह सब देख, सुनीता का सारा बदन गर्म हो गया। वह बुरी तरह कामाग्नि में झुलसने लगी। उसके मुख से अजीव सी कामुक आवाजे आने लगी थीं। अगले दृश्य में उसने एक स्त्री को गधे का लिंग सहलाते हुए देखा, गधे का लिंग थोड़ी ही देर में पूरा बाहर निकल आया। उस औरत ने लिंग को अपनी योनि पर टिका लिया और फिर गधे ने एक जोर का रेला उसकी योनि में दिया। गधे का समूंचा लिंग एक ही झटके से योनि में जा घुसा। औरत थोड़ी देर छटपटाई और फिर उठ खड़ी हुयी।
     सुनीता का शरीर बेकाबू हो गया उसने अपनी बड़ी बहिन को अपनी बाहों में कस कर जकड़ लिया और बोली, "दीदी, अब अपनी योनि में भी किसी का लिंग डलवाने की मेरी बहुत इच्छा हो रही है। दीदी, जीजू जब इस लायक नहीं हैं तो फिर तुम अपनी कामाग्नि कैसे शांत करती हो? "  अनीता ने अपनी बहिन को प्यार से चूमते हुए कहा, "फ़िक्र मत कर, आज मैं और तू किसी हट्टे-कट्टे आदमी से अपनी प्यास बुझाएंगे।"  सुनीता ने चहक कर पूंछा, "कौन है दीदी, जो हमारी प्यास बुझाएगा? आह: दीदी, मैं तो तड़प रही हूँ अपनी योनि फड़वाने के लिए। काश! वह सांड ही टीवी फाड़कर निकल आये और हम-दोनों को तृप्त कर दे अपने लिंग के धक्कों से।"  "सब्र कर बेवकूफ, वो मर्द कोई और नहीं है, मेरे पापा जी ही हैं जो आज हम-दोनों की इच्छाएं पूरी करेंगे।"  "दीदी, ये क्या कह रहीं हैं आप?"  "हाँ सुनीता, वे मेरे ससुर ही हैं जो मुझ तड़पती हुयी औरत को सहारा देते हैं। अब तू ही बता मुझे क्या करना चाहिए? क्या मैं पास-पड़ोस के लोगों को फंसाती फिरूं अपनी प्यास बुझाने के लिए?" सुनीता ने अपनी दीदी की बात पर अपनी सहमती व्यक्त की, बोली, "तुम ठीक ही कह रही हो दीदी, इससे घर की इज्जत भी बची रहेगी और तुम्हारी कामाग्नि भी शांत होती रहेगी। अच्छा दीदी, एक बात बताओ। क्या मौसा जी का भी इतना बड़ा और सख्त लिंग है जितना कि इस फिल्म में मर्दों का दिखा रहे थे, ऐसा मोटा-लम्बा किसी लम्बे खीरे जैसा? "  अनीता बोली,  "आज तू खुद है देख लेना अपनी आँखों से, अगर देख कर डर न जाए तो मेरा नाम बदल देना। मुझे तो डर है कि तू झेल भी पायेगी या नहीं।"  "हैं दीदी, सच में मैं नहीं झेल पाऊँगी उनका?"
     दोनों बहिनें बहुत देर तक वासना की इन्हीं बातों में डूबी रहीं। सुनीता बोली, "दीदी, अगर आप इजाजत दें तो मैं भी आपकी योनि चाट कर देख  लूं?" अनीता बोली, "चल देख ले। आज तू भी चख कर देख, योनि  से जो पानी निकलता है वह कितना आनंद दायक होता है।" अनीता ने लाइन क्लीयर कर दी। सुनीता ने दीदी की योनि पर अपनी जीभ फेरनी शुरू कर दी। अनीता की योनि बुरी तरह फड़कने लगी। वह बोली, "सुनीता, जरा जोरों से चाट, आह: कितना मज़ा आ रहा है। अपनी जीभ मेरी योनि की अन्दर-बाहर कर ...उई माँ ...मर गई मैं तो ...सुनीता और जोर से प्लीज़ ... आह: ...ऊह ..."  आधे घंटे तक चाटने के बाद सुनीता बोली, "दीदी, अब मेरी भी चाटो न, " तब अनीता ने उसकी क्वांरी योनि को चाटना शुरू कर दिया।  सुनीता का समूंचा बदन झनझना उठा। सुनीता के मुंह से भी सिसकारियां फूटने लगीं। वह बोली - "दीदी, क्या मौसा जी इस समय नहीं आ सकते? प्लीज़ उनसे कहो कि आकर मेरी योनी फाड़ डालें।"  अनीता बोली, "क्या पागल हो गयी है? थोडा सा भी इन्तजार नहीं कर सकती।"  "दीदी, अब बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हो रही ये मरी जवानी की आग ...दीदी, मौसा जी राज़ी तो हो जायेंगे न मेरी फाड़ने के लिए?"  "मरी बाबली है बिलकुल ही, जिसे एक-दम क्वांरी और अछूती योनि मिलेगी चखने को,  वह उसे लेने से इंकार कर देगा।"  "दीदी, और अगर नहीं हुए राज़ी तो ...?"  "वो सब तू मुझ पर छोड़, तू एक काम करना। आज रात वो मेरे पास आयें और हमारी काम-क्रीड़ायें शुरू हो जाएँ तो तू एक-दम से लाइट ऑन कर देना और ज़िद करना कि तुझे तो मेरे पास ही सोना है। हमारे पास आकर हमारे ऊपर पड़ा कम्बल खीच देना। हम-दोनों बिलकुल ही नंगे पड़े होंगें कम्बल के भीतर। तू कहना, मौसा जी, मुझे तो दीदी के पास ही सोना है। वे राज़ खुलने के डर से घवरा जायेंगे और तुझे भी अपने साथ सुलाने को मजबूर हो जायेंगे। बस समझो तेरा काम बन गया। फिर तू उनके साथ चाहे जैसे मज़ा लेना। समझ गयी न?" सुनीता को तसल्ली हो गयी कि आज उसके मौसा जी उसकी योनि जरूर फाड़ देंगे।
     सुनीता ने दीदी से कहा, "दीदी, तुम्हें एक बात नहीं मालूम होगी।"  "क्या?" अनीता ने पूछा। सुनीता ने बताया, "तुम्हारी शादी के बाद एक दिन मैं यों ही खिड़की की ओट से मझले भैया के कमरे में झाँकने लगी, मुझे भाभी के साथ किसी मर्द की आवाजें सुनाई दीं। कोई कह रहा था, 'अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे ऊपर आजा। अब मुझसे ज्यादा इन्तजार नहीं हो रहा।' मेरी उत्सुकता बढ़ी। मैंने सोचा की मझले भैया तो नाइट ड्यूटी जाते है फिर ये कौन आदमी भाभी से नंगी होने की बात कह रहा है। मैंने खिड़की थोड़ी सी और खोल कर अन्दर झाँका तो दीदी, बिलकुल ऐसा ही सीन अन्दर चल रहा था जैसा कि हम-लोगों ने अभी ब्लू-फिल्म में देखा था। बड़े भैया, मझली भाभी को नंगी करके अपने ऊपर लिटाये हुए थे और भाभी ऊपर से धक्के मार-मार कर बड़े भैया का लिंग अन्दर लिए जा रहीं थीं। मुझे यह खेल देखने का चस्का लग गया। एक बार मैंने उनका यह खेल छोटे भैया को भी दिखाया। देखते-देखते छोटे भैया उत्तेजित हो उठे और उन्होंने मेरी छातियों पर हाथ फेरना आरम्भ कर दिया। मैं किसी तरह भाग कर अपने कमरे में चली आई, छोटे भैया ने समझा कि बुरा मान कर अंदर भाग आई हूँ। वे मेरे पीछे-पीछे आये और मुझसे माफ़ी मांगने लगे। आगे कभी ऐसा न करने का वादा भी करने लगे। मैं कुछ नहीं बोली, और बह चुपचाप वहां से चले गए। उनके चले जाने के बाद मैं बहुत पछताई कि क्यों मैंने उनको नाराज़ कर दिया। अगर उनसे करवा ही लेती तो उस दिन मुझे कितना आनंद आता। अफ़सोस तो इस बात का रहा कि उन्होंने दुबारा मेरी छातियाँ क्यों नहीं दबाई। अगर आगे वह ऐसा करें तो मुझे क्या करना चाहिए दीदी?  हथियार डाल दूं उनके आगे, और कर दूं अपने आपको उनके हवाले?" 
      "पागल हो गयी है क्या तू! सगे भाई से यह सब करवाने की बात तेरे दिमाग में आई ही कैसे! देख सुनीता, सगे भाई-बहिन का रिश्ता बहुत ही पवित्र होता है। आगे से ऐसा कभी सोचना भी मत।"  " दीदी, तुम्हारी बातें सही हैं मगर जब लड़का और लड़की दोनों के ही सर पर वासना का भूत सबार हो जाये तो बेचारा दिल क्या करे? मेरी कितनी ही सहेलियां ऐसी हैं जिनके यौन-सम्बन्ध उनके अपने सगे भाइयों से हैं। और ये सम्बन्ध उनके वर्षों से चले आ रहे हैं।  मेरी एक सहेली को तो अपनी शादी के बाद अपने सगे छोटे भाई के साथ सम्बन्ध बनाने पड़े। उसका पति नपुंशक है और कभी उसके लिंग में थोड़ी-बहुत उत्तेजना आती भी है तो वह पत्नी की योनि तक पहुँचते-पहुँचते ही झड़ जाता है।"
     दोनों बहिनों को बातें करते-करते शाम हो आयी। ससुर ने आवाज लगाई, "बहू, जरा इधर तो आ। क्या आज खाना नहीं बनाना है?" अनीता पास आकर ससुर के कान में फुसफुसाई, "जानू आज समझो तुम्हारा काम बन गया। उसी को पटाने में इतनी देर लग गई। आप आज रात को मेरे पलंग पर आकर चुप-चाप लेट जाना, आगे सब मैं सम्हाल लूंगी।
     रात हुई, दोनों बहिनें अलग-अलग बिस्तरों पर लेतीं। सुनीता आँखें बंद करके सोई हुई होने का नाटक करने लगी। रात के करीब दस बजे धीरे से दरबाजा खुलने की आवाज आई। सुनीता चौकन्नी हो गई, उसने कम्बल से एक आँख निकाल कर देखा कि दीदी के ससुर अन्दर आये। अन्दर आकर उन्होंने अन्दर से कुण्डी लगा ली और दबे पाँव दीदी के कम्बल में घुस गए। अनीता पहले से ही पेटीकोट और ब्रा में थी। रामलाल ने भी अपने सारे वस्त्र उतार फैंके और अनीता को नंगी करके उसके ऊपर चढ़ गया। अब दोनों की काम-क्रीड़ायें शुरू हो गईं। रामलाल धीरे से अनीता के कान में बोला, "थोड़ी सी पिएगी मेरी जान, आज मैं बिलायती व्हिस्की लेकर आया हूँ। आज बोतल की और इस नई लौंडिया की सील एक साथ तोडूंगा।" रामलाल ने अपने कुरते को टटोलना शुरू किया ही था कि अनीता उसे रोकते हुए बोली, "अभी नहीं, सुनीता पर काबू पाने के बाद शुरू करेंगे पीना। आज मैं तुम दोनों को अपने हाथों से पिलाऊंगी और खुद भी पीउंगी तुम्हारे साथ। पहले मेरी बहिन की अनछुई जवानी का ढक्कन तो खोल दो,  बाद में बोतल का ढक्कन खुलेगा। रामलाल मुस्कुराया, बोला - "मेरी जान, तू मेरे लिए कितना कुछ करने को तैयार है। यहाँ तक कि अपनी छोटी बहिन की सील तुडवाने को भी राज़ी हो गई।"  "आप भी तो हमारे ऊपर सब-कुछ लुटाने को तैयार रहते हो मेरे राजा, फिर तुम्हारी रानी तुम्हारे लिए इतना सा काम भी नहीं कर सकती।"
     सुनीता कम्बल की ओट से सब-कुछ साफ़-साफ़ देख पा रही थी। नाईट बल्ब की रौशनी में दोनों के गुप्तांग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। सुनीता ने सोचा 'दीदी ने तो कहा था लाइट ऑन करके दोनों के ऊपर से कम्बल हटाने के लिए। यहाँ तो कुछ भी हटाने की जरूरत नहीं है, सब काम कम्बल हटाकर ही हो रहा है।' सुनीता ने उठकर लाइट ऑन कर दी। दोनों ने दिखावे के तौर पर अपने को कम्बल में ढकने का प्रयास किया। सुनीता बोली, "दीदी, मैं तो तुम्हारे पास सोऊँगी। मुझे तो डर लग रहा है अकेले में। अनीता ने दिखावटी तौर पर उसे समझाया, "हम-लोग यहाँ क्या कर रहे हैं, ये तो तूने देख ही लिया है,  फिर भी तू मेरे पास सोने की ज़िद कर रही है।"  रामलाल बोला, "हाँ,हाँ, सुला लो न बेचारी को अपने पास। उसे हमारे काम से क्या मतलब, एक कोने में पड़ी रहेगी बेचारी। आजा बेटी,  तू मेरी तरफ आजा।" सुनीता झट-पट रामलाल की ओर जा लेटी और बोली, "आप लोगों को जो भी करना है करो, मुझे तो जोरों की नीद लगी है।"  इधर अनीता और रामलाल का पहला राउंड चल रहा था,  इस बीच सुनीता कभी अपनी चूचियों को दबाती तो कभी अपनी योनि खुजलाती। जब अनीता और रामलाल स्खलित होगये तो रामलाल ने कहा, "जानू लाओ तो हमारी व्हिस्की की बोतल, इससे जोश पूरा आएगा, और लिंग की ताकत पहले से भी दूनी हो जाएगी।"  अनीता बोली, "मुझे तो बहुत थोड़ी सी देना, मैं तो पीकर सो जाउंगी। मेरे राजा, आज तो तुमने मेरी फाड़ कर रख दी। योनि भी बहुत दर्द कर रही है।"  फिर वह अपने ससुर जी के कान में बोली, "आज इसको कतई छोड़ना मत, सोने का बहाना बनाये पड़ी है। आज मैंने ब्लू-फिल्म दिखाकर इसे तुम्हारा यह मूसल सा मोटा लिंग अन्दर डलवाने के लिए बिलकुल तैयार कर लिया है।"
     लाइट तो ऑन थी ही, पलंग पर दोनों ससुर-बहू बिलकुल नग्नावस्था में बैठे थे। सुनीता ने मौसा जी के मोटे लिंग को कनखियों से देखा तो सर से पैर तक काँप गयी 'बाप रे, किसी आदमी का लिंग है या किसी घोड़े का' पूरे दस इंच लम्बा और मोटा लिंग अभी भी तनतनाया हुआ था, सुनीता की लेने की आस में। अनीता ने बोतल की सील तोड़ी और दो गिलासों में शराब उड़ेली दी। दोनों ने जैसे ही सिप करना चाहा कि सुनीता ने कम्बल से मुंह बाहर निकाल कर कहा, "दीदी, आप दोनों ये क्या पी रहे हैं? थोड़ी मुझे नहीं दोगे?"  अनीता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा, "ज़हर पी रहे हैं हम लोग, पीयेगी?"  "हाँ, मुझे भी दो न,"  रामलाल ने सुनीता की हिमायत लेते हुए कहा, "हाँ, दे दो थोड़ी सी इस बेचारी को भी।" अनीता ने दो पैग शराब एक ही गिलास में डाल दी और गिलास थमाते हुए बोली, "ले मर, तू भी पी थोड़ी सी।" सुनीता ने दो घूँट गले से नीचे उतारे, और कड़वाहट से मुंह बनाती बोली, "दीदी, ये तो बहुत ही कड़वी है।"   "अब गटक जा सारी चुपचाप, ज्यादा नखरे दिखाने की जरूरत नहीं है। ला थोड़ा सा पानी मिला दूं इसमें ...." अनीता ने बाकी का खाली गिलास पानी से भर दिया। सुनीता दो वार में ही सारी शराब गले के नीचे उतार गई और अपना कम्बल ओढ़ कर चुपचाप सोने का अभिनय करने लगी।
     शराब पीने के बाद रामलाल का अध-खड़ा लिंग अब पूरा तन-कर खड़ा हो गया। उसने अनीता से पूछा, "क्या शुरू की जाए इसके साथ छेड़खानी?"  अनीता ने धीरे से सर हिलाकर लाइन क्लियर होने का संकेत दे दिया। रामलाल अनीता से बोला, "तुम अपने लिए दूसरा कम्बल ले आओ। मैं तो अपनी प्यारी बिटिया के कम्बल में ही सो लूँगा।" ऐसा कह कर वह सुनीता के कम्बल में घुस गया। रामलाल के हाथ धीरे-धीरे सुनीता के वक्ष की ओर बढ़े। सुनीता ने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी, वह केवल नाइटी में थी। रामलाल ने ऊपर से ही सुनीता की चूचियां दबा कर स्थिति का जायजा लिया। सुनीता सोने का बहाना करते हुए सीधी होकर बिलकुल चित्त लेट गई जिससे कि रामलाल को उसका सारा बदन टटोलने में किसी प्रकार की बाधा न पड़े। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा, साँसें भी कुछ तेज चलने लगीं। रामलाल ने उसके होटों पर अपने होट टिका दिए और बेधड़क होकर चूसने लगा। सुनीता ने नकली विरोध जताया, "ओह दीदी, क्या मजाक करती हो। मुझे सोने भी दो अब .." रामलाल ने उसकी तनिक भी परवाह न करते हुए उसकी छातियाँ मसलनी शुरू कर दीं और फिर अपने हाथ उसके सारे बदन पर फेरने लगा। इधर सुनीता पर शराब और शवाब दोनों का ही नशा सबार था। उसके बदन में वासना  की हजारों चींटियाँ सी रिंगने लगीं।
   उसने अनजान बनते हुए रामलाल की जाँघों के बीच में हाथ रख कर उसके लिंग का स्पर्श भी कर लिया। तभी उसने लिंग को पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया, और बोली, "दीदी, तुम्हारी ये क्या चीज है?" इस बीच रामलाल ने उसकी नाइटी भी उतार फैंकी और उसे बिलकुल नंगी कर डाला। रामलाल ने ऊपर से कम्बल हटाकर उसका नग्न शरीर अनीता को दिखाते हुए कहा, "देखा रानी, तेरी बहिन बेहोशी में जाने क्या-क्या बड़बडाये जा रही है।" रामलाल ने उसकी दोनों जाँघों को थोडा सा फैलाकर उसकी योनि पर हाथ फिराते हुए कहा, "यार जानू तेरी बहिन तो बड़े ही गजब की चीज है। इसकी योनी तो देखो, कितनी गोरी और चिकनी है। कहो तो इसे चाट कर इसका पूरा स्वाद चख लूं? रानी, तू कहे तो इसकी योनि का पूरा रस पी जाऊं ...बड़ी रस दार मालूम पड़ रही है।"  "अनीता बोली, "और क्या ...जब नशे में मस्त पड़ी है तो उठालो मौके का फायदा। होश में आ गई तो शायद न भी दे। अभी अच्छा मौका है, डाल दो अपना समूंचा लिंग इसकी योनि के अन्दर।"  रामलाल ने उसकी जांघें सहलानी शुरू कर दीं। फिर धीरे से उसकी गोरी-चिकनी योनि में अपनी एक उंगली घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। उसने अनीता से पूछा, "क्यों जानू इसकी योनि के बाल तुमने साफ़ किये हैं?" "नहीं तो ..." अनीता बोली - "इसी ने साफ़ किये होंगे, पूरे एक घंटे में बाथरूम से निकली थी नहाकर।" 
     रामलाल सुनीता की योनि पर हाथ फेरता हुआ बोला, "क्या गजब की सुरंग है इसकी ! कसम से इसकी सुलगती भट्टी तो इतनी गर्म है कि डंडा डाल दो तो वह भी जल-भुन कर राख होकर निकलेगा अन्दर से।"  सुनीता से अब नहीं रहा गया, बोली - "तो डाल क्यों नहीं देते अपना डंडा मेरी गर्म-गर्म भट्टी में।" रामलाल की बांछें खिल उठीं। उसने सुनीता की चूची को मुंह में भर कर चूंसना शुरू कर दिया। सुनीता की सिसकियाँ कमरे में गूँज कर वातावरण को और भी सेक्सी व रोमांटिक बनाने लगीं। रामलाल अब खुलकर उसके नग्न शरीर से खेल रहा था। सुनीता ने रामलाल का लिंग पकड़ कर अपने मुंह में डाल लिया और मस्ती में आकर उसे चूंसने लगी। अब उसे अपने बदन की गर्मी कतई सहन नहीं हो रही थी। उसने रामलाल का लिंग अपनी जाँघों के बीच में दबाते हुए कहा, "मौसा जी, प्लीज़ ..अब अपना यह मोटा डंडा मेरी जाँघों के भीतर सरकाइये, मुझे बड़ा आनंद आ रहा है।" तब रामलाल ने मोटे लिंग का ऊपरी लाल भाग सुनीता की योनि में धीरे-धीरे सरकाना आरम्भ किया। सुनीता की  योनि में एक तेज सनसनाहट दौड़ गई। उसने कस कर अपने दांत भींच लिए और लिंग की मोटाई को झेल पाने का प्रयास करने लगी। रामलाल का लिंग जितना उसकी योनि के अन्दर घुस रहा था योनि में उतनी ही पीड़ा बढ़ती जा रही थी। अब रामलाल के लिंग में भी और अधिक उत्तेजना आ गई थी। उसने एक जोरदार धक्का पूरी ताकत के साथ मारा जिससे उसका समूंचा लिंग सुनीता की कोरी योनी को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया।
     सुनीता के मुंह से एक जोरों की चीख निकल कर वातावरण में गूँज उठी और वह रामलाल के लिंग को योनि से बाहर निकालने की चेष्टा करने लगी। अनीता ने रामलाल से कहा, "जानू इसके कहने पर अपने इंजन को रोकना नहीं, देखना अभी कुछ ही देर में रेल पटरी पर आ जाएगी। योनि से खून बह निकला जो चादर पर फैल गया था। अनीता सुनीता को डाटते हुए बोली, " देख सुनीता, अब तू चुपचाप पड़ी रह कर इनके लिंग के धक्के झेलती रह, यों व्यर्थ की चिखापुकारी से कुछ नहीं होगा। इस वक्त जो दर्द तुझे महसूस हो रहा है वह कुछ ही देर में मज़े में बदल जायेगा। इन्हें रोके मत, इनके रेस के घोड़े को सरपट दौड़ने दे, अधाधुंध अन्दर-बाहर। इनका बेलगाम घोडा जितनी तेजी से अन्दर-बाहर के चक्कर काटेगा उतना ही तुझे मज़ा आएगा।"  बड़ी बहिन की बात मानकर सुनीता थोड़ी देर अपना दम रोके यों ही छटपटाती रही और कुछ ही देर में उसे मज़ा आने लगा। रामलाल अबतक सेंकडों धक्के सुनीता की योनि में लगा चुका था। अब सुनीता के मुख से रामलाल के हर धक्के के साथ मादक सिसकारियाँ फूट रही थीं। उसे लगा कि वह स्वर्ग की सैर कर रही है। इधर रामलाल अपने तेज धक्कों से उसे और भी आनंदित किये जा रहा था। सुनीता अब अपने नितम्बों को उचका-उचका कर अपनी योनि में उसके लिंग को गपकने का प्रयास कर रही थी।
     वह मस्ती में भर कर चीखने लगी, "मौसा जी, जरा जोरों के धक्के लगाओ ...तुम्हारे हर धक्के में मुझे स्वर्ग की सैर का आनंद मिल रहा है ....आह: ...आज तो फाड़ के रख दो मेरी योनि को ....और जोर से ...और जोरों से ...उई माँ ...मौसा जी ...प्लीज़ धीरे-धीरे नहीं ...थोड़े और जोर से फाड़ो ..." उसने रामलाल को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया। अपनी दोनों टाँगों से उसने अपने मौसा जी के नितम्बों को जकड़ रखा था। अजब प्यास थी उसकी जो बुझाए नहीं बुझ रही थी। अंत:  रामलाल ने उसकी प्यास बुझा ही डाली। सुनीता रामलाल से पहले ही क्षरित हो कर शांत पड़ गई, उसने अपने हाथ-पैर पटकने बंद कर थे पर वह अब भी चुपचाप पड़ी अपने मौसा जी के लिंग के झटके झेल रही थी। आखिरकार रामलाल के लिंग से भी वीर्य की एक प्रचंड धारा फूट पड़ी। उसने ढेर सारा वीर्य सुनीता की योनि में भर दिया और निढाल सा हो उसके ऊपर लेट गया।
     कुछ देर बाद तीनों का नशा मंद पड़ा। रात के करीब दो बजे सुनीता का हाथ रामलाल के लिंग को टटोलने लगा। वह उसके लिंग को धीरे-धीरे पुन: सहलाने लगी। बल्ब की तेज रौशनी में उसने सोते हुए रामलाल के लिंग को गौर से देखा और फिर उसे अपनी उँगलियों में कस कर सहलाना शुरू कर दिया था। रामलाल और अनीता दोनों ही जाग रहे थे। उसकी इस हरकत पर दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े। अनीता ने कहा, "देख ले अपने मौसा जी के लिंग को, है न उतना ही मोटा, लम्बा जितना कि मैंने तुझे बताया था।"  वह शरमा कर मुस्कुराई। रामलाल ने भी हँसते हुए पूछा, "क्यों मेरी जान, मज़ा आया कुछ?" सुनीता ने शरमाकर रामलाल के सीने में अपना मुंह छिपाते हुए कहा, "हाँ मौसा जी, मुझे मेरी आशा से कहीं अधिक मज़ा आया आपके साथ। मालूम है, मैंने आपके साथ यह पहला शारीरिक सम्बन्ध बनाया है।"  रामलाल बोला, "सुनीता रानी, अब से मुझसे मौसा जी मत कहना। मुझसे शारीरिक सम्बन्ध बनाकर तूने मुझे अपना क्या बना लिया है, जानती है?"  सुनीता चुप रही। रामलाल बोला, "अब तूने मुझे अपना खसम बना लिया है। मैं अब तुम दोनों बहिनों का खसम हूँ। आई कुछ बात समझ में?" सुनीता बोली, "ठीक है खसम जी, पर सबके आगे तो मैं आपको मौसा जी ही कहूँगी।" रामलाल ने सुनीता की योनि में उंगली घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करते हुए कहा, "चलो सबके आगे तुम्हारा मौसा ही बना रहूँगा।"
     सुनीता ने रामलाल के एक हाथ से अपनी छातियाँ मसलवाते हुए कहा, "हमारा आपसे मिलन भी अनीता दीदी के सहयोग से ही हुआ है। अगर आज दीदी मुझे वह ब्लू-फिल्म नहीं दिखाती तो मैं आपके इस मोटे हथियार से अपनी योनि फड़वाने का इतना आनंद कभी नहीं ले पाती। मेरे खसम, अब तो अपना ये डंडा एक वार फिर से मेरी योनि में घुसेड़ कर उसे फाड़ डालने की कृपा कर दो। इस वार मेरी सुरंग फाड़ कर रख दोगे तो भी मैं अपने मुंह से उफ़ तक न करूंगी।" रामलाल बोला, "क्यों अपनी चूत का चित्तोड़-गढ़ बनबाना चाह रही है। मैं तो बना डालूँगा,  कुछ धक्को में तेरी योनि की वो दशा कर दूंगा कि किसी को दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगी। चल हो जा तैयार .." ऐसा कहकर राम लाल ने अपने मजबूत लिंग पर हाथ फिराया। इसी बीच अनीता बोली, "क्यों जी, आज में एक बात पूछना चाहती हूँ मुझे ये समझाओ कि योनि को लोग और किस-किस नामों से पुकारते हैं?" अनीता की बात पर सुनीता और रामलाल दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े।
     रामलाल बोला, "मेरी रानी, किसी भी चढ़ती जवानी की लड़की की योनि को चूत कहते हैं। इसके दो नाम हैं - एक चूत,  दूसरा नाम है इसका 'बुर'  चूत सदैव बिना बालों वाली योनि को कहते  हैं  जबकि 'बुर'  के ऊपर घने काले बाल होते हैं। अब नंबर आता है, भोसड़ी का। मेरी दोनों रानियों ध्यान से सुनना। जब औरत की योनि से एक बच्चा बाहर आ जाता है, तो उसे भोसड़ी कहते है। और जब उससे 4-5 बच्चे बाहर आ जाते हैं तो वह भोसड़ा बन जाता है।" सुनीता ने चहक कर पूछा, "और अगर किसी औरत की योनि से दस-बारह बच्चे निकल चुके हों तो वह क्या कहलाएगी?" रामलाल बोला, "ये प्रश्न तुमने अच्छा किया। ऐसी औरत की योनि को चूत या भोसड़ी का दर्ज़ा देना गलत होगा। ऐसी योनि बम-भोसड़ा कही जाने के योग्य होगी।"  तीनों लोग जोरों से हंस पड़े। अनीता ने पूछा, "राजा जी, इसीप्रकार लिंगों के भी कई नाम होते होंगे?"  "हाँ, होते हैं। आमतौर पर गवांरू भाषा में इसे 'लंड' कहते है।  परन्तु लड़ते वक्त या गालियाँ देते वक्त लोग इसे 'लौड़ा' कहकर संबोधित करते हैं। ये सारे शब्द मुझे कतई पसंद नहीं हैं, क्योंकि मैंने बीसियों रातें तुम्हारे संग गुजारी हैं। तुम ही खुद बताओ  अगर मैंने कभी इन गंदे शब्दों का प्रयोग किया हो। हाँ, मेरी जिन्दगी में कुछ ऐसी औरतें जरूर आई हैं, जो अधिक उत्तेजित अवस्था में चीखने लगती हैं ..'फाड़ डालो मेरी चूत' ...'मेरी चूत चोद-चोद कर इसका चबूतरा बना डालो' ...मेरी चूत को इतना चोदो कि इसका भोसड़ा बन जाए' बगैरा, बगैरा।
     एक काम-क्रीडा होती है - गुदा-मैथुन। इसमें पुरुष, स्त्री की योनि न मार कर उसकी गुदा मारता है। मेरे अपने विचार से तो गुदा-मैथुन सबसे गन्दी, अप्राकृतिक एवं भयंकर काम-क्रीड़ा है। इससे एड्स जैसी ला-इलाज़ बीमारियाँ होने का खतरा रहता है।" अनीता ने पूछा, "राजा जी, ये चोदना कौन सी बला है। मैंने कितने ही लोगो को कहते सुना है 'तेरी माँ चोद दूंगा साले' रामलाल ने बताया कि स्त्री की योनि में लिंग डालकर धक्के मारने की क्रिया को 'चोदना' कहते हैं। मैंने तुम दोनों बहिनों के साथ सम्भोग किया है, चोदा नहीं है तुम्हें।" सुनीता बोली, "मेरे खसम महाराज, एक वार और जोरों से चोदो न मुझे,"  रामलाल बोला, "चलो, तुम्हारी यह इच्छा भी आज पूरी किये देता हूँ। अनीता रानी, पहले एक-एक पैग और बनाओ, हम तीनों के लिए। तीनो शराब गले से  उतारने के बाद और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए। इस बार तीनों लोग एक साथ मिलकर काम-क्रीडा कर रहे थे। रामलाल के एक ओर सुनीता और दूसरी ओर अनीता लेटी और उन दोनों के बीच में रामलाल लेटे-लेटे दोनों के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था। रामलाल कभी सुनीता की योनि लेता तो कभी अनीता की चूचियों से खेलता। रात के दस बजे से लेकर सुबह के पांच बज गए। तब तक तीनों लोग शरीर की नुमाइश और काम-क्रीडा में व्यस्त रहे। इस प्रकार रामलाल ने दोनों बहिनों की रात भर बजाई।
     उस रात दोनों बहिनें इतनी अधिक तृप्त हो गईं कि दूसरे दिन दस बजे तक सोती रहीं। पूरे सप्ताह रामलाल ने सुनीता को इतना छकाया था कि जिसकी याद वह जीवन भर नहीं भूल पाएगी। सुनीता तो अपने घर वापस जाना ही नहीं चाहती थी। जाते वक्त सुनीता रामलाल से एकांत में चिपट कर खूब रोई। उसका लिंग पायजामे के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली, "जानू अपने इस डंडे का ख़याल रखना। मुझे शादी के बाद भी इसकी जरूरत पड़ सकती है। क्या पता मेरा पति भी जीजू के जैसा ही निकला तो ...?" सुनीता भारी मन से,  न चाहते हुए भी अपने घर चली तो गयी पर जाते-जाते रामलाल के लिए एक प्रश्न छोड़ गयी ...कि कहीं उसका पति भी जीजू जैसा ही निकला तो .....?

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