Saturday 8 December 2012

बदलते रिश्ते

अनीता नई-नवेली दुल्हिन के रूप में सजी-सजाई सुहागरात मनाने की तैयारी में अपने पलंग पर बैठी थी। थोडा सा घूँघट निकाल रखा था जिसे दो उंगलियो से उठाकर बार-बार कमरे के दरबाजे की ओर देख लेती। उसे बड़ी बेसब्री से इन्तजार था अपने पति के आने का। सोच में डूबी थी कि वह आकर धीरे से उसका घूँघट उठाएगा और कहेगा, " वाह ! कितनी ख़ूबसूरत हो तुम और फिर उसे आलिंगन-बद्ध करके उसके ओठ चूमेगा, फिर गाल, फिर गला और फिर धीरे-धीरे थोडा सा नीचे ...और नीचे ...फिर और नीचे ...फिसलता हुआ नाभि तक उतरेगा ...और फिर उसके बाद क्या होगा इसकी कल्पना में डूबी रहते उसे काफी देर हो चली। रात के ग्यारह बज गए। उसकी निगाहें दरबाजे पर ही टिकीं थीं। लगभग आधे घंटे के बाद किसी ने दरबाजे की कुण्डी खटखटाई और उसके पति-देव ने अपनी मुंह-बोली भाभी के साथ कक्ष में प्रवेश किया। पति, अनमोल आकर दुल्हिन के पलंग पर बैठ गया। भाभी बोली - " देख बहू, कहने को तो मैं तेरे पति की मुंह-बोली भाभी हूँ पर समझती हूँ बिलकुल अपने सगे देवर जैसा ही। वह धीरे से उसके कान में फुसफुसाई, " देवर जी, जरा शर्मीले मिजाज़ के हैं। आज की रात पहल तुझे ही करनी पड़ेगी। बाद में सब ठीक-ठाक  हो जायेंगे।" उसके जाने के बाद अनीता ने उठकर कुण्डी लगा ली। अनमोल चुपचाप यों ही बुत बना बैठा रहा। अनीता उसके पास खिसकी कि वह मुंह फेर कर सो गया। अनीता काफी देर तक सोचती रही कि अब उठेगा और उसे अपनी बाँहों में लेकर उसके चुम्बन लेगा ... फिर उससे कहेगा ' चलो, सोते हैं। सारे दिन की थकी-हारी होगी।' और फिर अपने साथ लेटने को कहेगा। वह थोड़े-बहुत नखरे दिखा कर उसके साथ सुहागरात मनाने को राज़ी हो जाएगी।' अनीता को सोचते-सोचते न जाने कब नीद आ गयी। जब घडी ने दो बजाये तो उसकी दोबारा आँख खुल गयीं। उसने उसी प्रकार लेटे-लेटे धीरे से अपनी एक टांग पति के ऊपर रख दी। पति हल्का सा कुनमुनाकर फिर से सो गया। रात बीतती जा रही थी। अनीता प्रथम रात्रि के खूबसूरत मिलन की आस लिए छटपटा रही थी। अनीता के सब्र का बाँध टूटने लगा। मन में तरह-तरह की शंकाएं उठने लगीं ' कहीं उसका पति नपुंशक तो नहीं, वर्ना अब तक तो उसकी जगह कोई भी होता तो उसके शरीर के  चिथड़े उड़ा देता। उसके मन में आया कि क्यों न पति के पुरुषत्व की जाँच कर ली जाये। उसने धीरे से सोता-नीदी का अभिनय करते हुए अपना एक हाथ अनमोल की जाँघों के बीचो-बीच रख दिया। उसे कोई कड़ी सी चीज उभरती सी प्रतीत हुयी। अनीता ने अंदाज़ कर लिया कि कम से कम वह नपुंशक तो नहीं है। आखिर फिर क्यों वह अब तक चुप-चाप पड़ा है। उसे भाभी की बात याद आ गयी। 'बहू, हमारे देवर जी जरा शर्मीले मिजाज़ के  हैं। आज की रात पहल तुझे ही करनी पड़ेगी।' चलो, मैं ही कुछ करती हूँ। वह पति से बोली, " क्यों जी, ऐसा नहीं हो सकता कि मैं तुमसे चिपट कर सो जाऊँ। नया घर है, नई जगह, मुझे तो डर सा लग रहा है।"  "ठीक है, सो जाओ। मगर मेरे ऊपर अपनी टांगें मत रखना।" " क्यों जी, आपकी पत्नी हूँ कोई गैर तो नहीं हूँ।" अनमोल कुछ न बोला। पत्नी उससे चिपट गयी। दोनों की साँसें टकराने लगीं। अनीता पर मस्ती सी छाने लगी। उसने धीरे से अपनी एक टांग उठाकर चित्त लेटे हुए पति पर रख दी। इस बीच उसने फिर कोई सख्त सी चीज अपनी जांघ पर चुभती महसूस की। वह बोली, " ऐसा करते हैं, मैं करवट लेकर सो जाती हूँ। तुम मेरे ऊपर अपनी टांग रखो, मुझे अच्छा लगेगा।" ऐसा कहकर अनीता ने पति की ओर अपनी पीठ कर दी, अनमोल कुछ बोला नहीं पर उसने पत्नी के कूल्हे पर अपनी एक टांग रख दी। अनीता को इसमें बड़ा ही अच्छा लग रहा था क्योंकि अब वह पति की जाँघों के बीच वाली  चीज अपने नितम्बों के बीचो-बीच गढ़ती हुयी सी महसूस कर रही थी। इसी को पाने के लिए ही तो बेचारी घंटों से परेशान थी। आज उसका पति जरूर उसके मन की बात समझ कर रहेगा। अगर नहीं भी समझा तो समझा कर रहूंगी। अनीता से अब अपने यौवन का बोझ कतई नहीं झिल पा रहा था। वह चाह रही थी कि उसका पति उसके तन-बदन को किसी रस-दार नीबू की तरह निचोड़ डाले। खुद भी अपनी प्यास बुझा ले और अपनी तड़पती हुयी पत्नी के जिस्म की आग भी ठंडी कर दे। अत: उसने पति का हाथ पकड़ कर अपने सीने की गोलाइयों से छुआते हुए कहा,  " देखो जी, मेरा दिल कितनी तेजी से धड़क रहा है।" अनमोल ने पत्नी की छातियों के भीतर तेजी से धड़कते हुए दिल को महसूस किया और बोला, " ठहरो, मैं अभी पापा को उठाता हूँ। उनके पास बहुत सारी दवाइयां रहती हैं। तुम्हें कोई-न कोई ऐसी गोली दे देंगें कि तुम्हारी ये धड़कन कम हो जाएगी।" अनीता घवरा उठी, बोली - "अरे नहीं, जब पति-पत्नी पहली रात को साथ-साथ सोते हैं तो ऐसा ही होता है।"    "तो फिर मेरा दिल क्यों नहीं धड़क रहा? देखो, मेरे दिल पर हाथ रख कर देखो।" अनीता बोली - "तुम लड़की थोड़े ही हो, तुम तो लड़के हो। तुम्हारी भी कोई चीज फड़क रही है, मुझे पता है।" अनीता मुस्कुराते हुए बोली। अनमोल बोला -" पता है तो बताओ, मुझे क्या हो रहा है?"  अनीता ने फिर पूछा - " बताऊँ, बुरा तो नहीं मानोगे?"  " नहीं मानूंगा, चलो बताओ?" अनीता ने पति की जाँघों के बीच के बेलनाकार अंग को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर कहा - "फिर ये क्या चीज है जो बराबर मेरी पीठ में गड़ रही है? कहीं किसी का बिना बात में तनता है क्या?" अनमोल सच-मुच झेंप सा गया और बोला - "मेरा तो कुछ भी नहीं है, पड़ोस-वाले भैया का तो इतना लम्बा और मोटा है कि देख लोगी तो डर जाओगी।" अनीता ने पूछा - " तुम्हें कैसे पता कि उनका बहुत मोटा और लम्बा है? तुमने क्या देखा है उनका?" अनमोल थोडा रुका फिर बोला - " हाँ, मैंने देखा है उनका। एक वार मैं अपनी खिड़की से बाहर की ओर झांक रहा था कि अचानक मेरी निगाह उनके कमरे की ओर उठ गयी। मैंने देखा कि भइया भाभी को बिलकुल नंगा करके ...."  "क्या कर रहे थे भाभी को बिलकुल नंगा करके?" अनीता को इन बातों में बड़ा आनंद आ रहा था, बोली - "बताओ न, तुम्हें मेरी कसम है। " अनमोल ने अनीता के मुंह पर हाथ रख दिया और नाराज होता हुआ बोला - "आज के बाद मुझे कभी अपनी कसम मत देना  "क्यों ?" अनीता ने पूछा। अनमोल बोला- "एक वार मुझे मेरी माँ ने अपनी कसम दी थी, वो मुझसे हमेशा के लिए दूर चली गयीं।"   "इसका मतलब है तुम नहीं चाहते कि मैं तुमसे दूर चली जाऊं?" अनमोल खामोश रहा। अनीता ने कहा - "अगर तुम मेरी बात मानोगे तो मैं तुम्हे कभी अपनी कसम नहीं दूँगी, बोलो मानोगे मेरी बात?" अनमोल ने धीमे स्वर में हाँमी भर दी। ....अनीता बोली - "फिर बताओ न, क्या किया भैया ने भाभी के साथ उन्हें नंगा करके ?" अनमोल बोला, " पहले भैया ने भाभी को बिलकुल नंगा कर डाला, और फिर खुद भी नंगे हो गए। फिर उन्होंने एक तेल की शीशी उठाकर भाभी की जाँघों के बीच में तेल लगाया। तब उन्होंने अपने उस पर भी मसला।"  "किसपर मसला?" अनीता बातों को कुरेद कर पूरा-पूरा मज़ा ले रही थी  साथ ही पति के मोटे बेलनाकार अंग पर भी हाथ फेरती जा रही थी। "बताओ, किस पर मसला ?" "अरे, अपने बेलन पर मसला और किस पर मसलते!" "फिर आगे क्या हुआ?" "होता क्या .... उन्होंने अपना बेलन भाभी की जाँघों के बीच में घुसेड दिया ... और फिर वो काफी देर तक अपने बेलन को आगे-पीछे करते रहे ...भाभी मुंह से बड़ी डरावनी आवाजें निकाल रहीं थीं। ऐसा लग रहा था कि भाभी को काफी दर्द हो रहा था। मगर ...फिर वह भैया को हटाने की वजाय उनसे चिपट क्यों रहीं थीं, ये बात मेरी समझ में आज तक नहीं आयी। " अनीता बोली - "मेरे भोले पति-देव ये बात तुम तब समझोगे जब तुम किसी के अन्दर अपना ये बेलन डालोगे।" अनमोल ने पूछा - "किसके अन्दर डालूँ ?" अनीता बोली - " मैं तुम्हारी बीबी हूँ मेरी जाँघों के बीच में डाल कर देखो, मुझे मजा आता है या मुझको दर्द होता है?" "ना बाबा ना, मुझे नहीं डालना तुम्हारी जाँघों के बीच में अपना बेलन। तुम्हें दर्द होगा तो तुम रोओगी।"  अनीता बोली - "अगर मैं वादा करूँ कि नहीं रोउंगी तो करोगे अपना बेलन मेरे अन्दर?"  "मुझे शर्म आती है।" अनीता ने पति की जाँघों के बीच फनफनाते हुए उसके बेलन को पकड़ लिया और उसे धीरे-धीरे सहलाने लगी। अनमोल का बेलन और भी सख्त होने लगा। अनीता बोली -"अच्छा, मेरी एक बात मानो। आज की रात हम पति-पत्नी की सुहाग की रात है। अगर आज की रात पति अपनी पत्नी की बात नहीं मानेगा तो पत्नी मर भी सकती है। बोलो, क्या चाहते हो मेरी जिन्दगी या मेरी मौत?"  "मैं तुम्हारी जिन्दगी चाहता हूँ।"  "तो दे दो फिर मुझे जिन्दगी।" अनीता बोली।
"आ जाओ मेरे ऊपर और मसल कर रख दो मुझ अनछुई कच्ची कली को।" अनमोल डर गया और शरमाते हुए पत्नी के ऊपर आने लगा। अनीता बोली- "रुको, ऐसे नहीं, पहले अपने सारे कपडे उतारो।" अनमोल ने वैसा ही किया। जब वह नंगा होकर पत्नी के ऊपर आया तो उसने पाया कि उसकी पत्नी अनीता पहले से ही अपने सारे कपडे उतारे नंगी पड़ी थी। अनीता ने अनमोल से कहा , "अब शुरू करो न, " अनीता ने अपनी छातियों को खूब सहलवाया। और उसका हाथ अपनी जाँघों के बीच में लेजाकर अपनी सुलगती सुरंग को भी सहलवाया। अनमोल बेचारा ...एक छोटे आज्ञाकारी बच्चे की भांति पत्नी के कहे अनुसार वो सब-कुछ किये जा रहा था जैसा वह आदेश दे रही थी। अब बारी आयी कुछ ख़ास काम करने की। अनीता ने पति का लिंग पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया और उस पर तेल लगा कर मालिश करने लगी। अगले ही क्षण उसने पति के तेल में डूबे हथियार को अपनी सुलगती हुयी भट्टी में रख लिया और पति से जोरो से धक्के मारने को कहा। तेल का चुपड़ा लिंग घचाक से आधे से ज्यादा अन्दर घुस गया। "उई माँ मर गयी मैं तो ..." अनीता तड़प उठी और सुबकते हुए पति से बोली, "आखिर फाड़ ही डाली न, तुम्हारे इस लोहे के डंडे ने मेरी सुरंग।" अगले ही पल बाकी का आधा लिंग भी योनि मैं जा समाया। उसकी योनि बुरी तरह से आहत हो चुकी थी। योनि-द्वार से खून का एक फब्बारा सा फूट पड़ा ... पर इस दर्द से कहीं ज्यादा उसे आनंद की अनुभूति हो रही थी ...वह पति को तेज और तेज रफ़्तार बढ़ाने का निर्देश देने से बाज़ नहीं आ रही थी। आह! आज तो मज़ा आ गया सुहागरात का। पति ने पूछा, " अगर दर्द हो रहा है तो निकाल लूं अपना डंडा बाहर।" "नहीं, बाहर मत निकालो अभी ...बस घुसेड़ते रहो अपना डंडा मेरी गुफा में अन्दर-बाहर ...जोरों से ..आह, और जोर से, आज दे दो अपनी मर्दानगी का सबूत मुझे ...आह, अनमोल, अगर तुम पूरे दिल से मुझे प्यार करते हो तो आज मेरी इस सुलगती भट्टी को फोड़ डालो, ....अनमोल को भी अब काफी आनंद आ रहा था, वह बढ़-चढ़ कर पूरा मर्द होने का परिचय दे रहा था। लगभग आधे घंटे की लिंग-योनि की इस लड़ाई में पति-पत्नी दोनों ही मस्ती में भर उठे। कुछ देर के लगातार घर्षण ने अनीता को पूरी तरह तृप्त कर दिया। बाकी की रात दोनों एक-दूजे से योंही नंगे लिपटे सोते रहे। सुबह आठ बजे तक दोनों सोते रहे। जब अनीता के ससुर रामलाल ने आकर द्वार खटकाया तब दोनों ने जल्दी से अपने-अपने कपडे पहने और अनीता ने आकर कुण्डी खोली। सामने ससुर रामलाल को खड़े देख उसने जल्दी से सिर पर पल्लू रखा और उसके पैर छुए। सदा सुखी रहो बहू! कह कर ससुर रामलाल बाहर चला गया।

अनीता ने अपने ससुर के यहाँ आकर केवल दो लोगों को ही पाया। एक तो उसका बुद्धू, अनाड़ी पति और दूसरा उसका ससुर रामलाल। सास, ननद, जेठ, देवर के नाम पर उसने किसी को नहीं देखा। वह अपने अनाड़ी पति के वारे में सोचती तो उसे अपने भाग्य पर बहुत ही क्रोध आता। किन्तु अब हो भी क्या सकता था। फिर वह सब्र कर लेती कि चलो बस औरतों के मामले में ही तो अनमोल शर्मीला है। बाकी न तो पागल है  और न ही कम-दिमाग है। वैसे तो हर अच्छे-बुरे का ज्ञान है ही उसे। वह सोचने लगी कि अगर कल रात वह स्वयं पहल न करती तो सारी रात यों ही तड़पना पड़ता उसे। सुहागरात से ही अनीता के तन-बदन में आग सी लगी हुई थी। हालांकि उसके पति ने उसे संतुष्ट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। उसने जैसा कहा बेचारा वैसा ही करता रहा था सारी रात, किन्तु फिर भी अनीता के जिस्म की प्यास पूरी तरह से नहीं बुझ पाई थी। वह तो चाहती थी कि सुहाग की रात उसका पति उसके जवान व नंगे जिस्म की एक-एक पर्त हटा कर उसकी जवानी का भरपूर आनंद लेता किन्तु अनमोल ने तो उसे नंगा देखने तक से मना कर दिया था।

सुबह जब अनमोल उठा तब से ही उसकी तबियत कुछ ख़राब सी हो रही थी। वह सुबह खेतों में चला तो गया परन्तु अनमने और अलसाए हुए मन से। दूसरी रात फिर पत्नी ने छेड़ा-खानी शुरू कर दी। वह रात भर उसे अपनी ओर आकर्षित करने के नए-नए उपाय करती रही मगर अनमोल टस से मस न हुआ। हार झक मार कर वह सो गयी। तीसरी रात को अनमोल ने कहा, "अनीता मुझे परेशान न करो, मेरी तबियत ठीक नहीं है।" अनीता ने अनमोल के बदन को छू कर देखा उसे सच-मुच बुखार था। अनीता ने माथे पर पानी की गीली पट्टी रख कर सुबह तक बुखार तो उतार दिया फिर भी वह स्वयं को ठीक महसूस नहीं कर रहा था। अनमोल को डाक्टर को दिखाया गया। डाक्टर ने बताया कि कोई खास बात नहीं है। अधिक परिश्रम करने के कारण उसको कमजोरी आ गयी है। तीन दिन के बाद अनमोल का बुखार उतर गया। अनीता के मन में लड्डू फूटने लगे। आज की रात तो बस अपनी सारी इच्छाएं पूरी करके ही दम लेगी। आज तो वह पति के आगे पूरी नंगी होगर पसर जायेगी फिर देखें कैसे वह मना करेगा। रात हुयी, अनीता पूरी तैयारी के साथ उसके साथ लेटी थी। धीरे-धीरे उसका हाथ पति की जाँघों तक जा पहुंचा। अनमोल ने एक बार को उसे रोकना भी चाहा किन्तु वह अपनी पर उतर आयी। उसने पति के लिंग को कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया और कहने लगी अगर इतनी ही शर्म आती है तो फिर मुझसे शादी ही क्यों की थी। आज में तुम्हे वो सारी चीजें दिखाउंगी जिनसे तुम दूर भागना चाहते हो। ऐसा कहते हुए उसने अपने ऊपर पड़ी रजाई एक ओर सरका दी और बोली- "इधर देखो  मेरी तरफ ...बताओ तो सही मैं अब कैसी दिख रही हूँ।" अनमोल ने उसकी ओर देखा तो देखता ही रह गया। "अनीता तुम्हारा नंगा बदन इतना गोरा और सुन्दर है! मैंने तो आज तक किसी का नंगा बदन नहीं देखा।" अपनी आशा के विपरीत पति के बचन सुनकर अनीता की बाछें खिल उठीं। उसने उछल कर पति को अपनी बांहों में भर लिया। अनमोल बोला,  "अरे, जरा सब्र करो। मुझे भी कपडे तो उतार लेने दो। आज मैं भी नंगा होकर ही तुम्हारा साथ दूंगा।" वह अपने कुरते के बटन खोलता हुआ बोला। तब तक अनीता ने उसके पायजामे का नाडा खोल दिया और उसे नीचे खिसकाने लगी। "अरे, अरे, रुको भी भई। जरा तो धीरज रखो। आज भी मैं वही करूंगा जो तुम कहोगी।"   "तो फिर जल्दी उतार फेंको सारे कपड़ों को ...और आ चढ़ो एक अच्छे पति की तरह मेरे ऊपर।" कपड़े उतार कर अनमोल अनीता के ऊपर आ गया। उसका लिंग गर्म और तनतनाया हुआ था। अनीता ने लपक कर उसे पकड़ लिया और अपने समूचे नंगे जिस्म पर रगड़ने लगी। अपने पति को इस हाल में देख वह ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। उससे अधिक देर तक नहीं रुका गया और उसने पति के लिंग को अपनी दोनों जाँघों के बीच कस कर भींच लिया और पति के ऊपर आकर लिंग को अपने योनि-द्वार पर टिकाकर अपने अन्दर घुसाने का प्रयास करने लगी। अनीता ने कस कर एक जोर-दार झटका दिया कि सारा का सारा लिंग एक ही बार में उसकी योनी के भीतर समा गया। ख़ुशी से उछल पड़ी वह, और फिर जोरों से धक्के मार-मार कर किलकारियां भरने लगी। पर बेचारी की यह ख़ुशी अधिक देर तक नहीं टिक सकी। दो-तीन झटकों में ही अनमोल का लिंग उसका साथ छोड़ बैठा। यानी एक दम खल्लास हो गया। अनीता ने दोबारा उसे खड़ा करने की बहुतेरी कोशिश की पर नाकाम रही। अनमोल ने उसके क्रोध को और भी बढ़ा दिया यह कह कर कि अनीता अब तुम भी सो जाओ। कल सुबह मुझे दो एकड़ खेत जोतना है। अनीता ने झुंझलाकर कहा - "दो एकड़ खेत क्या खाक़ जोतोगे  ... पत्नी की दो इंच की जगह तो जोती नहीं जाती, कब से सूखी पड़ी है।"  अनीता नाराज होकर सो गयी। सुबह पड़ोस की भाभी ने पूछा, "इतनी सुबह देवर जी कहाँ जाते हैं, मैं कई दिनों से देख रही हूँ उन्हें जाते हुए।" अनीता बोली, "आज कल उनपर खेत जोतने की धुन सबार है। इसी लिए सुबह-सुबह घर से निकल पड़ते हैं।" भाभी ने व्यंग्य कसा, " अरी बहू, तेरा खेत भी जोतता है या यों ही सूखा छोड़ रखा है।" इस पर अनीता की आंते-पीतें सुलग उठीं किन्तु मुंह से बोली कुछ नहीं। धीरे-धीरे एक माह बीत चला, अनमोल ने अनीता को छुआ तक नहीं।

अनीता खिन्न से रहने लगी। रामलाल (अनीता का ससुर) अनीता के अन्दर आते बदलाव को कुछ दिनों से देख रहा था। एक दिन जब बेटा खेतों पर गया हुआ था, वह अनीता से पूछ ही बैठा, "बहू , तू मुझे कुछ उदास सी दिखाई पड़ती है, बेटा तू खुश तो है न, अनमोल के साथ।" अनीता कुछ न बोली मगर उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे। रामलाल की अनुभवी आँखें तुरंत भांप गयीं कि कहीं कुछ गड़-बड़ तो जरूर है। वह धीमे से उसके पास आकर बोला, "अनमोल और तेरे बीच वो सब कुछ तो ठीक है न, जो पति-पत्नी के बीच होता है। समझ गयी न, मैं क्या कहना चाह रहा हूँ?" अनीता इस बार भी न बोली, सिर्फ टिशुये बहाती रही। रामलाल बोला, "चल, अन्दर चल-कर बात करते हैं। तू अगर अपना दुखड़ा मुझसे नहीं कहेगी तो फिर किससे कहेगी।" ससुर-बहू बाहर से उठ कर अन्दर कमरे में आ खड़े हुए। रामलाल ने बड़े ही प्यार से अनीता के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, "बता बेटा, मुझे बता,  तुझे क्या दुःख है?"  रामलाल का हाथ उसके सिर से फिसलकर उसके कन्धों पर आ गया। वह बोला, "देख बहू, मैं तेरा ससुर ही नहीं, तेरे पिता के समान भी हूँ। तुझे दुखी मैं कैसे देख सकता हूँ।"  ऐसा कहकर रामलाल ने बहू को अपने सीने से लगा लिया। उसका हाथ कन्धों से फिसलकर बहू की पीठ पर आ गया।  उसने अनीता की पीठ सहलाते हुए कहा, "बहू, सच-सच बता ...सुहागरात के बाद तुम पति-पत्नी के बीच दुबारा कोई सम्बन्ध बना?"    "बस एक बार और बना था।"   "वह कैसा रहा?"  ससुर ने पुन: पूछा। अनीता से अब कतई न रहा गया। वह फूट-फूट कर रो पड़ी। बोली -"पापा जी, वो तो बिलकुल ही नामर्द हैं।"  रामलाल ने उसे और जोरों से अपने वक्ष से सटाते हुए तसल्ली दी,  "रोते नहीं बेटी, इस तरह धीरज नहीं खोते। मेरे पास ऐसे-ऐसे नुस्खे हैं जिनसे जनम से नामर्द लोग भी मर्द बन जाते हैं। अगर सौ साल का बूढ़ा भी मेरा एक नुस्खा खा ले तो सारी रात मस्ती से काटेगा।" रामलाल के अब दोनों हाथ बहू की पीठ और उसके नितम्बों को सहलाने लगे थे। रामलाल का अनुभव कब काम आएगा। वह अब हर पैतरा बहू पर आजमाने की पूरी कोशिश में जुटा था। बहू को एक बार भी विरोध न करते देख वह समझ चुका था कि वह आसानी से उसपर चड्डी गाँठ सकता है। बहू के नितम्बों को सहलाने के बाद तो उसका भी तनकर खड़ा हो गया था। इधर अनीता के अन्दर का सैलाव भी उमड़ने लगा। उसके तन-बदन में वासना की हजारों चींटियाँ काटने लगी थीं। रामलाल का तना हुआ लिंग अनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था जिससे अनीता को बड़ा सुखद अनुभव हो रहा था, किंतु कैसे कहती कि पापा जी, अपना पूरा लिंग खोल कर दिखा दो। वह चाह रही थी कि किसी प्रकार ससुर जी ही पहल करें। वह अपना सारा दुःख-दर्द भूल कर ससुर की बातों और उसके हलके स्पर्श का पूरा आनंद ले रही थी। रामलाल किसी न किसी बहाने बात करते-करते बहू की छातियों का भी स्पर्श कर लेता था। अनीता को  अब यह सब बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा था। जब रामलाल ने भांपा कि अब अनीता उसका बिलकुल विरोध करने की स्थिति में नहीं है तो बोला, "आ बहू, बैठ कर बात करते हैं। तुझे अभी बहुत कुछ समझाना बाकी है। अच्छा एक बात बता, मेरा प्यार से तेरे ऊपर हाथ फिराना कहीं तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है?"  "नहीं तो ..."  रामलाल ने बहू के मुंह से ये शब्द सुने तो उसने उसे और भी कसकर अपनी बाँहों में भर कर बोला, "देख, आज मैं तुझे एक ऐसी सीडी दूंगा, जिसे देख कर नामर्दों का भी खड़ा हो जायेगा। तू कभी वक्त निकाल कर पहले खुद देखना तभी तुझे मेरी बात का यकीन हो जायेगा। "   "ऐसा क्या है पापा जी उसमे?"  उसमे ऐसी-ऐसी फ़िल्में हैं जिसे तू भी देखेगी तो पागल हो उठेगी। औरत-मर्द के बीच रात में जो कुछ भी होता है वो सब कुछ  तुझे इसी सीडी में देखने को मिलेगा।" इसी बीच रामलाल ने बहू के नितम्बों को जोरों से दबा दिया और फिर अपने हाथ फिसलाकर उसकी जाँघों पर ले आया। अनीता ने एक हलकी सी सिसकारी भरी। रामलाल आगे बोला, "क्या तू विश्वास कर सकती है कि कोई औरत घोड़े का झेल सकती है?"  "नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है, पापा जी? औरत मर नहीं जायेगी घोड़े का डलवाएगी अपने अन्दर तो?"  "अरे, तू मेरा यकीन तो कर। अच्छा, कल तुझे वह सीडी दूंगा तो खुद ही देख लेना"  "पापा जी, आज ही दिखाओ न, वह कैसी सीडी है। मुझे जरा भी यकीन नहीं आ रहा।"  "ज़िद नहीं करते बेटा, कल रात को जब अनमोल एक विवाह में शामिल होने जायेगा तो तू रात में देख लेना। अभी अनमोल के आने का वक्त हो चला है।" रामलाल ने बहू के गालों पर एक प्यार भरी थपकी दी और उसके नितम्बों की दोनों फांकों को कस इधर-उधर को फैलाया और फिर कमरे से बाहर निकल आया।
     रामलाल के कमरे से बाहर निकलते ही अनमोल आ गया। अनीता ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि अच्छा हुआ जो पापा जी वक्त रहते बाहर निकल गए, वर्ना अनमोल पर जरूर इसका गलत प्रभाव पड़ता। रात हुयी और पति-पत्नी फिर एक साथ लेटे। अनीता ने धीरे से अपना हाथ पति की जाँघों के ओर बढ़ाया और पति-देव के मुख्य कारिंदे को मुट्ठी में पकड़ कर रगड़ना शुरू कर दिया पर लिंग में तनिक भी तनाव नहीं आया। अनमोल कुछ देर तक चुपचाप लेटा रहा और अनीता उसके लिंग को बराबर सहलाती रही। अंत में कोई हरकत न देख वह उठी और उसने मुरझाये हुए लिंग को ही मुंह में लेकर खूब चूंसा। काफी देर के बाद लिंग में हरकत सी देख अनीता पति के लिंग पर सबार होने की चेष्टा में उसके ऊपर आ गयी और उसने अपनी योनि को  फैलाकर लिंग को अन्दर लेने की कोशिश की। इस बार लिंग मुश्किल से अन्दर तो हो गया किन्तु जाते ही स्खलित हो गया और सिकुड़े हुए चूहे जैसा बाहर आ गया। अनीता का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। रात भर योनि में ऊँगली डाल कर बड़-बड़ करती अपनी काम-पिपासा को शांत करती रही।
       अगले दिन अनमोल किसी विवाहोत्सव में सम्मिलित होने चला जायेगा, यह सोचकर अनीता बहुत खुश थी। वह शीघ्र ही रात होने का इन्तजार करने लगी। एक-एक पल उसे युगों सा कटता प्रतीत हो रहा था। दिन भर वह रामलाल के ख्यालों में खोई रही। उसे ससुर द्वारा अपने सिर से लेकर कन्धों, पीठ और फिर अपने नितम्बों तक हाथ फिसलाते हुए ले जाना, अपनी चूचियों को किसी न किसी बहाने छू लेना, और उनका कड़े लिंग का अपनी जाँघों से स्पर्श होना रह-रह याद आ रहा था। वह एक सुखद कल्पना में सारे दिन डूबी रही। शाम को अनमोल विवाह में शामिल होने चला गया तब उसे कहीं चैन आया। अब उसने पक्का निश्चय कर लिया था कि आज की रात वह अपने ससुर (रामलाल) के साथ ही बिताएगी और वह भी पूरी मस्ती के साथ। इसी बीच उसने उपने कक्ष के दरवाजे पर हलकी सी थपथपाहट सुनी। वह दौड़ कर गयी और दरवाजे की कुण्डी खोली तो देखा बाहर उसका ससुर रामलाल खड़ा था। बिना कुछ बोले वह अन्दर आ गयी और पीछे-पीछे ससुर जी भी आ खड़े हुए। अनीता ने गद-गद कंठ से पूछा, "पापा जी, लाये वह सीडी, जो आप बता रहे थे।"  "हाँ बहू, ये ले और डाल कर देख इसे सीडी प्लेयर में।" अनीता ने लपक कर सीडी रामलाल के हाथ से ले ली और उसे प्लेयर में डाल कर टी वी ओन कर दिया। परदे पर स्त्री-पुरुष की यौन क्रीड़ायें चल रही थीं। रामलाल ने सीन को आगे बढ़ाया - एक मोटा चिम्पैंजी एक क्वारी लड़की की योनि में अपना मोटा लम्बा लिंग घुसाने की चेष्टा में था। लड़की बुरी तरह से दर्द से छटपटा रही थी। आखिरकार वह उसकी योनि फाड़ने में कामयाब हो ही गया। इस सीन को देखकर अनीता ससुर के सीने से जा लिपटी। रामलाल ने उसे अपनी बांहों में भर कर तसल्ली दी -"अरे, इतने से ही डर गयी। अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है बहू।" रामलाल के हाथ अब खुलकर अनीता की छातियाँ सहला रहे थे। अनीता को एक विचित्र से आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह और भी रामलाल के सीने से चिपटी जा रही थी। रामलाल ने बहु का हाथ थामकर अपने लिंग का स्पर्श कराया। अनीता अब कतई विरोध की स्थिति में नहीं थी। उसने धीरे से रामलाल के लिंग का स्पर्श किया। और फिर हलके-हलके उसपर हाथ फेरने लगी। वह रामलाल से बोली, "पापा जी वह सीन कब आएगा?"  "कौन सा बहू " इस बीच रामलाल ने अनीता की जांघों  को सहलाना शुरू कर दिया था। जांघें सहलाते-सहलाते उसने अनीता की सुरंग में अपनी एक उंगली घुसेड दी। अनीता सिंहर उठी और उसके मुंह से एक तेज सिसकारी फूट पड़ी - "आह:! उफ्फ ....अब बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा ....."  "क्या बर्दास्त नहीं हो रहा बहू ? ले तुझे अच्छा नहीं लगता तो मैं अपनी उंगली बाहर निकाल लेता हूँ।"  रामलाल ने बहू की सुरंग से अपनी उंगली बाहर निकाल ली और दूर जा बैठा। वह जानता था कि  अनीता के रोम-रोम में मस्ती भर उठी है और वह अब समूंचा लिंग अपनी दहकती भट्टी में डलवाए बिना नहीं रह सकती। अनीता को लगा कि ससुर जी नाराज हो गए हैं। वह दूर जा बैठे रामलाल से जा लिपटी। बोली - "पापा जी, आप तो बुरा मान गए।" "...तो फिर तुमने ये क्यों कहा कि अब तो बिलकुल बर्दाश्त नहीं हो रहा ..."  "पापा जी, मेरा मतलब ये नहीं था जो आप समझ रहे हैं।" "फिर क्या था तुम्हारा मतलब ?"   "अब पापा जी, आप से क्या छिपा है ...आप नहीं जानते, जब औरत की आग पूरी तरह से भड़क जाती है तो उसकी क्या इच्छा होती है?"  "नहीं, मुझे क्या पता औरत की चाहत का कि वह क्या चाहती है।"  "अनीता बोली - "अब मैं आपको कैसे समझाऊँ की मेरी क्या इच्छा हो रही है।"  "बहू, तू ही बता, मैं तेरी मर्ज़ी कैसे जान सकता हूँ। तू एक हल्का सा इशारा दे, मैं समझने की कोशिश करता हूँ।"  "मैं कुछ नहीं बता सकती, आपको जो भी करना है करो ...
अब मैं आपको रोकूंगी नहीं।"  "ठीक है...फिर मैं तो कहूँगा की तू अपने सारे कपडे उतार दे, और बिलकुल नंगी होकर मेरे सामने पसर जा। आज मैं तेरी गदराई जवानी का खुलकर मज़ा लूँगा ... बोल देगी ?"   अनीता ने धीरे से सिर हिला कर स्वीकृति दे दी और बोली नंगी मुझे आप खुद करोगे, हाँ, मैं पसर जाऊंगी आपके सामने।" रामलाल ने कहा, "देख बहू, फिर तेरी फट-फटा जाये तो मुझे दोष न देना, पहले मेरे इसकी लम्बाई और मोटाई देख ले अच्छी तरह से।" रामलाल ने अपना कच्छा उतार फैंका और अपना फनफनाता लिंग उसके हाथो में थमा दिया।  "कोई बात नहीं, मुझे सब मंजूर है।" फिर रामलाल ने एक-एक करके अनीता के सारे कपडे उतार फैंके और खुद भी नंगा हो गया। अनीता ससुर से आ लिपटी और असका मोटा लिंग सहलाते हुए बोली, "पापा जी, बुरा तो नहीं मानोगे?"  "नहीं मानूंगा, बोल ..."   अनीता ने कहा, "आपका ये किसी घोड़े के से कम थोड़े ही है।"
इसी बीच दोनों की निगाहें एक साथ टीवी पर जा पहुंची। एक नंगी औरत घोड़े का लिंग अन्दर ले जाने की कोशिश में थी। धीरे-धीरे उसने घोड़े का आधा लिंग अपनी योनि के अन्दर कर लिया। अनीता सहमकर ससुर से बुरी तरह से चिपट गयी। रामलाल ने बहू को नंगा करके अपने सामने लिटा रखा था और उसकी जांघें फैलाकर सुरंग की एक-एक परत हटाकर रसदार योनि को चूंसे जा रहा था। अनीता अपने नितम्बो  को जोरों से हिला-हिला कर पूरा आनंद ले रही थी। अनीता ने एक बार फिर टीवी का सीन देखा। लड़की की योनि  में घोड़े का पूरा लिंग समा चुका था। एकाएक रामलाल को जैसे कुछ याद आ गया हो वह उठा और टेबल पर रखा रेज़र उठा लाया। उसने अनीता के गुप्तांग पर उगे काले-घने बाल अपनी उँगलियों में उलझाते हुए 
कहा - "ये घना जंगल और ये झाड़-झंकाड़ क्यों उगा रखा है अपनी इस खूबसूरत गुफा के चारों ओर?"    "पापा जी, मुझे इन्हें साफ़ करना नहीं आता"  "ठीक है, मैं ही इस जंगल का कटान किये देता हूँ।" ऐसा कहकर रामलाल ने उसकी योनि पर शेविंग-क्रीम लगाई और रेज़र से तनिक देर में सारा जंगल साफ़ कर दिया और बोला - "जाओ, बाथरूम में जाकर इसे धोकर आओ। तब दिखाऊँगा तुम्हे तुम्हारी इस गुफा की खूबसूरती। अनीता बाथरूम में जाकर अपनी योनि को धोकर आयी और फिर रामलाल के आगे अपनी दोनों जांघें इधर-उधर फैलाकर चित्त लेट गयी रामलाल ने एक शीशे के द्वारा उसे उसकी योनि की सुन्दरता दिखाई। अनीता हैरत से बोली, "अरे, मेरी ये तो बहुत ही प्यारी लग रही है।"  वह आगे बोली, "पापा जी, आपके इस मोटे मूसल पर भी तो बहुत सारे बाल हैं। आप इन्हें साफ़ क्यों नहीं करते?"  रामलाल बोला, "बहू, यही बाल तो हम मर्दों की शान हैं। जिसकी मूंछें न हों और लिंग पर घने बाल न हों तो फिर वह मर्द ही क्या। हमेशा एक बात याद रखना, औरतों की योनि चिकनी और बाल-रहित सुन्दर लगती है मगर पुरुषों के लिंग पर जितने अधिक बाल होंगे वह मर्द उतना ही औरतों के आकर्षण का केंद्र बनेगा।" अनीता बोली, "पापा जी, मुझे तो आपका ये बिना बालों के देखना है। लाइए रेज़र मुझे दीजिये और बिना हिले-डुले चुपचाप लेटे रहिये, वर्ना कुछ कट-कटा गया तो मुझे दोष मत दीजियेगा।" अनीता ने ससुर के लिंग पर झट-पट शेविंग क्रीम लगाई और सारे के सारे बाल मूंड कर रख दिए। रामलाल जब लिंग धोकर बाथरूम से लौटा तो उसके गोरे, मोटे और चिकने लिंग को देख कर अनीता की योनि लार चुआने लगी। योनि रामलाल के लिंग को गपकने के लिए बुरी तरह फड़फड़ाने लगी और अनिता ने लपक कर उसका मोटा तन-तनाया लिंग अपने मुंह में भर लिया और उतावली हो कर चूसने लगी। रामलाल बोला - "बहू, तू अब अपनी जांघें फैलाकर चित्त लेट जा और अपने नितम्बों के नीचे एक हल्का सा तकिया लगा ले।"  "ऐसा क्यों पापा जी?"  "ऐसा करने से तेरी योनि पूरी तरह से फ़ैल जाएगी और उसमे मेरा ये मोटा-ताज़ी, हट्टा-कट्टा डंडा बिना किसी परेशानी के सीधा अन्दर घुस जाएगा।" अनीता ने वैसा ही किया। रामलाल ने बहू के योनि-द्वार पर अपने लिंग का सुपाड़ा टिकाकर एक जोर-दार झटका मारा कि उसका समूंचा लिंग धचाक से अन्दर जा घुसा। अनीता आनंद से उछल पड़ी। वह मस्ती में आकर अपने कुल्हे और कमर उछाल-उछाल कर लिंग को ज्यादा से ज्यादा अन्दर-बाहर ले जाने की कोशिश में जुटी थी। रामलाल बोला, "बहू, तेरी तो वाकई बहुत ही चुस्त है। कुदरत ने बड़ी ही फुर्सत में गढ़ी होगी तेरी योनि।"  "अनीता बोली, आपका हथियार कौन सा कम गजब का है। पापा जी, सच बताइए, सासू जी के अलाबा और कितनी औरतों की फाड़ी है आपके इस मोटे लट्ठे ने।"  रामलाल अनीता की योनि में लगातार जोरों के धक्के लगाता हुआ बोला, "मैंने कभी इस बात का हिसाब नहीं लगाया। हाँ, तुझे एक बात से सावधान कर दूं। मेरे-तेरे बीच के इन संबधों की तेरी पड़ोसिन जिठानी को को जरा भी भनक न लग जाए। वह बड़ी ही छिनाल किस्म की औरत है। हमें सारे में बदनाम करके ही छोड़ेगी।"  "नहीं पापा जी, मैं क्या पागल हूँ जो किसी को भी इस बात की जरा भी भनक लगने दूँगी। वैसे, आप एक बात बताओ, क्या ये औरत आपसे बची हुयी है?" रामलाल जोरों से हंस पड़ा , बोला - "तेरा यह सोचना बिलकुल सही है बहू,  इसने भी मुझसे एक वार नहीं, कितनी ही वार ठुकवाया है।" "अच्छा, एक बात और पूछनी है आपसे .."  "पूंछो बहू,..."  "पहली रात को क्या सासू जी आपका ये मोटा हथियार झेल पाई थीं?"  "अरे कुछ मत पूछ बहू,  जब मेरा तेरी सास के साथ ब्याह हुआ था तब वह सिर्फ 13 साल की थी और मैं 18 साल का। इतना तजुर्बा भी कहाँ था तब मुझे, कि पहले उसकी योनि को सहला-सहला कर गर्म करता और जब वह तैयार हो जाती तो मैं उसकी क्वारी व अनछुई योनि में अपना लिंग धीरे-धीरे सरकाता। मैं तो बेचारी पर एक-दम से टूट पड़ा था और उसे नंगी करने उसकी योनि के चिथड़े-चिथड़े कर डाले थे। बस योनि फट कर फरुक्काबाद जा पहुंची थी। पूरे तीन दिन मैं होश में आयी थी तेरी सास। अगली बार जब मैंने उसकी ली तो पहले उसे खूब गरम कर लिया था जिससे वह खुद ही अपने अन्दर डलवाने को राज़ी हो गयी।" अनीता तपाक से बोली, "जैसे मेरी योनि को सहला-सहला कर उसे आपने खौलती भट्टी बना दिया था आज। पापा जी, इधर का काम चालू रखिये ...एक वार, सिर्फ एक वार मेरी सुलगती सुरंग को फाड़ कर रख दीजिये। मैं हमेशा-हमेशा के लिए आपकी दासी बन जाऊंगी। "  "ले बहू, तू भी क्या याद करेगी ...तेरा भी कभी किसी मर्द से पाला पड़ा था। आज मुझे रोकना मत, अभी तेरी उफनती जवानी को मसल कर रखे देता हूँ।" ऐसा कह कर रामलाल अपने मोटे लिंग पर तेल मलकर अनीता पर दुबारा पिला तो अनीता सिर से पैर तक आनंद में डूब गयी। रामलाल के लिंग का मज़ा ही कुछ और था पर वह भी कब हिम्मत हारने वाली थी। अपने ससुर को खूब अपने नितम्बों को उछाल-उछाल कर दे रही थी। अंतत: लगभग एक घंटे की इस लिंग-योनि की धुआं-धार लड़ाई में दोनों ही एक साथ झड़ गए और काफी देर तक एक-दूजे के नंगे शरीरों से लिपट कर सोते रहे। बीच-बीच में दो-तीन वार उनकी आँखें खुलीं तो वही सिलसिला दुबारा शुरू हो गया। उस रात रामलाल ने बहू की चार वार मारी और हर वार में दोनों को ही पहले से दूना मज़ा आया। अनीता उसी रात से ससुर की पक्की चेली बन गयी। अब वह ससुर के खाने-पीने का भी काफी ध्यान रखती थी ताकि उसका फौलादी डंडा पहले की तरह ही मजबूत बना रहे। पति की नपुंशकता की अब उसे जरा भी फ़िक्र न थी। हाँ, इस घटना के बाद रिश्ते जरूर बदल गए थे। रामलाल सबके सामने अनीता को बहू या बेटी कहकर पुकारता परन्तु एकांत में उसे मेरी रानी, मेरी बुलबुल आदि नामों से संबोधित करता था। और अनीता समाज के सामने एक लम्बा घूंघट निकाले उसके पैर छूकर ससुर का आशीर्वाद लेती और रात में अपने सारे कपडे उतार कर उसके आगे पसर जाती थी। (इस कहानी का शेष भाग अगले अंक में पढ़ें।)

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